“एक कप चाय, टूटी उम्मीदें और नई शुरुआत”
मुंबई की भीड़-भाड़ भरी सड़कों पर, जहां हर कोई अपनी रफ्तार में दौड़ रहा था, वहीं एक कोने में कविता अपनी दस साल की बेटी महिमा के साथ एक छोटा-सा चाय का ठेला चलाती थी। जिंदगी ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया था—खासकर खुद्दारी और मजबूती। तलाक के बाद न तो कविता ने किसी से मदद मांगी, न ही हालात के आगे घुटने टेके। उसकी दुनिया अब बस उसकी बेटी थी, जिसकी बीमारी ने उसकी रातों की नींद छीन ली थी।
एक दिन, सचिन—कविता का पूर्व पति—अपनी चमचमाती स्कॉर्पियो में बैठा ऑफिस के काम से उसी पुराने मोहल्ले से गुजर रहा था। वही गली, वही नुक्कड़, जहां कभी कविता के साथ चाय की चुस्कियां लिया करता था। आज सब बदल गया था—दुकानों के नाम, दीवारों के रंग, पर यादें अब भी वहीं थीं।
सचिन की नजर अचानक एक चाय के ठेले पर पड़ी। एक औरत, माथे पर बड़ा सा तिल, पसीने में भीगी, हाथ में केतली लिए ग्राहकों को चाय दे रही थी। पास में एक दुबली-पतली बच्ची बैठी थी, जिसकी आंखों में मासूमियत और थकान दोनों थी। सचिन के कदम वहीं रुक गए। दिल ने कहा—यह वही कविता है, जिसे कभी उसने अपना सब कुछ माना था।
पहचानने में देर नहीं लगी, लेकिन यकीन करना मुश्किल था। कभी जिस कविता को वह नाजुक फूल की तरह रखता था, आज वही धूप में तपकर चाय और फल बेच रही थी। सचिन की आंखों के सामने सारी पुरानी बातें घूम गईं—साथ बिताए पल, झगड़े, अलगाव, और वह दिन जब उसने कविता को छोड़ दिया था। पर आज, कविता की आंखों में कोई शिकायत नहीं थी, बस एक मजबूती थी।
सचिन ने खुद को संभाला और ठेले के पास जाकर बोला, “एक कड़क चाय और कुछ आम देना।” कविता ने बिना देखे चाय छानी, आम तौले और पैसे मांगे। सचिन ने जानबूझकर ज़्यादा पैसे दिए, पर कविता ने दो सौ रुपये लौटाते हुए कहा, “भीख नहीं चाहिए साहब, मेहनत की कमाई काफी है।”
सचिन का दिल भर आया। उसकी नजर पास रखी महिमा की तस्वीर पर गई। वही मासूम चेहरा, कमजोर लेकिन आंखों में चमक। वह समझ गया—यह उसकी बेटी है, जिसे उसने कभी गोद में खिलाया था। सचिन ने कांपती आवाज़ में पूछा, “तुम्हारा पति कुछ नहीं करता?” कविता ने शांत स्वर में जवाब दिया, “बारह साल पहले तलाक हो गया साहब।”
सचिन चुपचाप लौटने लगा, मगर दिल में तूफान था। घर पहुंचकर रातभर सो नहीं सका। बार-बार महिमा का चेहरा आंखों के सामने आता रहा। सुबह होते ही वह बाजार गया—दवाइयां, फल, किताबें और एक छोटी सी गुड़िया खरीदी। फिर उसी गली में पहुंचा, जहां कल कविता और महिमा मिली थीं।
महिमा दरवाजे पर बैठी थी। सचिन ने धीरे से पुकारा, “पापा…” महिमा की आंखें चमक उठीं। सचिन ने उसे गले से लगा लिया। कविता दरवाजे पर थी—आंखों में आंसू, पर चेहरे पर शांति। सचिन ने कविता को एक छोटा पैकेट दिया—कुछ रंगीन चूड़ियां और एक सादा मंगलसूत्र। बोला, “अगर माफ कर सको तो एक बार फिर से सब कुछ शुरू करना चाहता हूं।”
कविता की आंखें भर आईं। उसने मंगलसूत्र थामा और कहा, “अगर फिर वही गलती की तो यह चूड़ियां कभी नहीं पहनूंगी।” सचिन ने सिर झुकाया, “अब कभी झूठ नहीं बोलूंगा।”
उस शाम तीनों ने साथ बैठकर चाय पी। महिमा की हंसी पूरे घर में गूंज रही थी। कविता की चूड़ियों की खनक और सचिन की आंखों की चमक ने साबित कर दिया—जिंदगी जब दूसरा मौका देती है, तो उसे थाम लेना चाहिए।