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    Home » मांजी मैं अपनी सहेलियों के साथ बाहर घूमने जा रही हूं, बहू रसोई घर का ताला तो खोल दो नहीं मांजी आप चोरी कर लोगी फिर बूढ़ी सास ने बहू की चालाकी को ऐसे निकाला की बहू की बोलती बंद हो गई आखिर सास ने ऐसा क्या किया होगा
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    मांजी मैं अपनी सहेलियों के साथ बाहर घूमने जा रही हूं, बहू रसोई घर का ताला तो खोल दो नहीं मांजी आप चोरी कर लोगी फिर बूढ़ी सास ने बहू की चालाकी को ऐसे निकाला की बहू की बोलती बंद हो गई आखिर सास ने ऐसा क्या किया होगा

    rinnaBy rinna13/10/202517 Mins Read
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    कहानी का नाम: वक्त सबका आता है

    पुरानी हवेली के एक हिस्से में, उस छोटे से गाँव में, रामचरण और उनकी पत्नी लक्ष्मी का साधारण किंतु प्रतिष्ठित परिवार रहता था। रामचरण जी एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे और उनकी ईमानदारी तथा मेहनत पूरे गाँव में प्रसिद्ध थी। उनका जीवन बहुत सादगी से भरा था। उम्र के इस पड़ाव पर, उन्होंने अपनी ज़िंदगी का ज़्यादातर हिस्सा अपने बेटे शिव और बेटी गौरी की परवरिश और शिक्षा में समर्पित कर दिया था। शिव परिवार का एकमात्र बेटा था और गौरी उनकी लाडली बेटी थी। परिवार में सब एक-दूसरे का आदर करते थे और आपस में बेहद प्रेम था।

    रामचरण जी का मानना था कि शिक्षा ही वह साधन है जो किसी के जीवन में बदलाव ला सकता है। वे रोज़ सुबह जल्दी उठते, अपनी दिनचर्या का पालन करते और समय से स्कूल पहुँचते। उनका हृदय बच्चों के प्रति दयालु था और वे हमेशा यह प्रयास करते थे कि उनके विद्यार्थी अपने जीवन में कुछ बड़ा कर सकें। गाँव के लोग उन्हें आदर से ‘गुरुजी’ कहकर पुकारते थे।

    लक्ष्मी भी एक आदर्श गृहणी थीं, जो पूरे घर का ख्याल बड़ी ही बारीकी से रखती थीं। शिव, जो कि उनका इकलौता बेटा था, पिता के गुणों पर चला था। उसने गाँव के स्कूल से पढ़ाई की और अपने माता-पिता की तरह वह भी सादगी में विश्वास करता था।

    अब रामचरण जी को इस बात की चिंता होने लगी थी कि शिव की शादी का समय आ गया है। वे चाहते थे कि शिव के लिए एक अच्छी, संस्कारी बहू मिले। लक्ष्मी से बातचीत के बाद, उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे एक साधारण और संस्कारी परिवार की लड़की ढूँढेंगे।

    इस निर्णय के बाद, रामचरण जी और लक्ष्मी ने गाँव के ही एक सम्माननीय रिश्तेदार से अपनी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा, “हमें शिव के लिए एक अच्छी, संस्कारी लड़की चाहिए जो परिवार के हर सदस्य का आदर करे और हमारे साथ प्रेम से रहे।”

    कई जगहों से रिश्ते आने लगे, लेकिन रामचरण जी ने अपने परिवार के संस्कारों और मूल्यों के अनुसार हर रिश्ते को अच्छी तरह परखा। कुछ दिनों बाद, एक रिश्तेदार ने एक गाँव के बारे में जानकारी दी जहाँ एक साधारण लेकिन संस्कारी परिवार की लड़की के बारे में सुना गया था। लड़की का नाम राधा था। वह एक गरीब परिवार से थी, लेकिन उसके माता-पिता ने उसे अच्छे संस्कार दिए थे। अगले ही दिन, वे अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ उस लड़की से मिलने के लिए गए। लक्ष्मी को भी राधा बहुत पसंद आई। राधा के माता-पिता ने उन्हें बताया कि उनकी बेटी को घर के सारे काम आते हैं और वह अपने परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित है। रामचरण जी और लक्ष्मी को यह देखकर बहुत खुशी हुई कि उनके बेटे के लिए एक योग्य जीवन-साथी मिल गई है। उन्होंने वहीं पर राधा के माता-पिता से बातचीत की और विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार कर लिया गया।

    शादी के दिन पूरे गाँव में खुशियाँ छाई हुई थीं। रामचरण जी ने अपनी बचत का ज़्यादातर हिस्सा इस शादी में लगा दिया। राधा और शिव का विवाह पूरे रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ। विवाह के बाद राधा अपने ससुराल आ गई और परिवार के सदस्य उसके स्वागत में लगे रहे।

    शादी के बाद का समय बहुत ही सुखद था। राधा अपने सास-ससुर और पति के साथ बहुत अच्छी तरह से घुल-मिल गई थी। उसने जल्दी ही पूरे परिवार के दिल में अपनी जगह बना ली। राधा ने घर के हर काम में लक्ष्मी का साथ देना शुरू कर दिया। वह सुबह उठकर पूरे घर की साफ-सफाई करती, सबके लिए नाश्ता बनाती और हर काम में सास का हाथ बँटाती थी। शिव और राधा का रिश्ता भी बहुत मधुर था।

    बदलाव

    शुरुआती कुछ महीनों तक सब कुछ बहुत अच्छा चलता रहा, लेकिन समय के साथ लक्ष्मी और रामचरण जी ने राधा के व्यवहार में कुछ बदलाव महसूस किए। वह अब पहले की तरह परिवार के हर काम में शामिल नहीं होती थी और न ही पहले जैसा आदर दिखाती थी।

    राधा, जो कभी समर्पण का प्रतीक थी, अब देर से उठने लगी थी। जो मुस्कान हमेशा उसकी पहचान थी, वह अब गायब हो चुकी थी, और उसकी जगह एक गहरी उदासीनता ने ले ली थी। लक्ष्मी ने शुरू में सोचा कि शायद नई जगह पर उसे पूरी तरह समायोजन में थोड़ी कठिनाई हो रही होगी, लेकिन यह उदासीन रवैया धीरे-धीरे बढ़ता ही गया।

    एक दिन लक्ष्मी ने ध्यान दिया कि राधा अक्सर फोन पर किसी से बातें करती रहती थी। वह अधिकांश समय अपने कमरे में बिताने लगी थी। इस दूरी ने लक्ष्मी के मन में कई सवाल खड़े कर दिए।

    रामचरण जी ने भी महसूस किया कि राधा अब घर के प्रति वैसा जुड़ाव नहीं दिखा रही है। एक शाम, उन्होंने शिव से इस बारे में चर्चा करने का निर्णय लिया। शिव भी अपनी पत्नी के इस बदलाव से हैरान था, लेकिन उसने अपने माता-पिता को तसल्ली देते हुए कहा कि शायद यह सब कुछ समय का ही मामला है और जल्द ही राधा सामान्य हो जाएगी।

    लेकिन कुछ दिनों बाद, एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। एक सुबह, लक्ष्मी ने राधा को अलमारी में से कुछ कागज़ात निकालते हुए देखा। राधा ने उन्हें देखा और तुरंत अलमारी बंद कर दी। उस दिन से, लक्ष्मी ने महसूस किया कि राधा घर के भीतर किसी खोज में है।

    एक रात, जब पूरे घर में सन्नाटा था, लक्ष्मी ने हल्की आवाज़ें सुनीं। वे धीरे-धीरे उठीं और राधा के कमरे के पास पहुँचीं। कमरे से हल्की-हल्की फुसफुसाने की आवाज़ें आ रही थीं। लक्ष्मी ने दरवाज़े के पास कान लगाए तो उन्हें किसी अजनबी की आवाज़ सुनाई दी। ऐसा लग रहा था कि राधा किसी से मिलकर कोई योजना बना रही है। अब उन्हें यकीन हो गया कि राधा के मन में कुछ छिपा हुआ है जो उनके परिवार के लिए सही नहीं हो सकता।

    कुछ ही दिनों बाद, एक और घटना हुई। एक दोपहर, रामचरण जी अचानक से अपने कमरे में लौटे और उन्होंने देखा कि राधा उनके मेज़ पर रखे कागज़ों को उलट-पलट कर देख रही थी। राधा की नज़रें रामचरण जी पर पड़ीं और वह सकपका गई। उसने जल्दी से कागज़ वापस मेज़ पर रख दिए और बिना कुछ कहे बाहर निकल गई।

    भयानक दुर्घटना

    इन घटनाओं के बाद, रामचरण जी और लक्ष्मी ने यह तय किया कि अब समय आ गया है कि वे सीधे राधा से बात करें।

    उस दिन की सुबह बाकी दिनों की तरह ही सामान्य थी। अचानक लक्ष्मी को याद आया कि आज मंगलवार है और उन्होंने अपने पति से कहा, “रामचरण जी, क्यों ना हम आज मंदिर चलें? काफी दिनों से भगवान के दर्शन नहीं किए हैं।” रामचरण जी सहमति में सिर हिलाते हुए बोले।

    दोनों अपनी पुरानी स्कूटर पर मंदिर जाएँगे। लक्ष्मी ने हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी और रामचरण जी ने सफेद कुर्ता-पायजामा। घर छोड़ने से पहले उन्होंने बेटे और बहू को मंदिर जाने की बात कही, लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

    सुबह का समय था और रास्ते में हवा की ठंडक ने दोनों का मन खुश कर दिया। स्कूटर धीमी गति से चल रही थी। लक्ष्मी पीछे बैठी रामचरण जी से धीमी आवाज़ में बातचीत करती जा रही थीं।

    इसी बीच, अचानक एक तेज़ रफ्तार से आती हुई कार ने पीछे से उनकी स्कूटर को टक्कर मार दी।

    कार की टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि स्कूटर के साथ-साथ दोनों ज़मीन पर गिर गए। चारों ओर से लोग मदद के लिए दौड़ पड़े। लक्ष्मी का सिर बुरी तरह से चोटिल हो चुका था और खून बहने लगा, वहीं रामचरण जी के पैर पर गंभीर चोट आई और उनका पैर दर्द से काँप रहा था। कुछ ही मिनटों में एम्बुलेंस आई और लक्ष्मी और रामचरण जी को अस्पताल ले जाया गया।

    अस्पताल में, डॉक्टर ने बताया कि रामचरण जी के पैर में गंभीर चोट आई है और अगर तुरंत ऑपरेशन नहीं किया गया तो उनका पैर काटना पड़ेगा, नहीं तो उनकी जान को खतरा है। एक पत्नी के लिए अपने पति को इस हालत में देखना अत्यंत कष्टकारी था, लेकिन उनकी इच्छा थी कि उनके पति ज़िंदा रहें, चाहे उनके पैर का त्याग ही क्यों न करना पड़े। उन्होंने डॉक्टर से कहा, “डॉक्टर साहब, चाहे जो हो जाए, मेरे पति को बचा लीजिए। एक पैर कम होगा, पर मेरा जीवन उनके बिना अधूरा रहेगा।”

    ऑपरेशन खत्म होने के बाद, डॉक्टर ने बताया कि रामचरण जी अब सुरक्षित हैं, लेकिन उनका एक पैर काटना पड़ा है। लक्ष्मी को अपने पति के बिना अधूरापन महसूस हो रहा था, लेकिन उनके जीवित रहने की खुशी ने उस अधूरेपन को सहारा दे दिया।

    अस्पताल में कोई और परिवार का सदस्य उनके पास नहीं आया और लक्ष्मी अकेले ही सब संभाल रही थीं। उन्हें यह देखकर दुख हुआ कि उनके बेटे या बहू में से कोई भी उनसे मिलने तक नहीं आया।

    दो दिनों के बाद, डॉक्टर ने रामचरण जी को छुट्टी दे दी। जब वे घर पहुँचे, तो लक्ष्मी ने अपने बेटे और बहू को दरवाज़े पर देखा, लेकिन उनके चेहरे पर कोई सहानुभूति या चिंता नहीं दिख रही थी।

    राधा ने दरवाज़ा खोलते ही कहा, “अब यह नया नाटक क्या है? क्या अब हमें यह सब सहना पड़ेगा?”

    राधा के इस व्यवहार ने लक्ष्मी के दिल को चीर कर रख दिया। रामचरण जी को अपने कमरे में ले जाते समय भी लक्ष्मी ने देखा कि कोई मदद करने के लिए आगे नहीं आया। राधा और शिव अपने कमरे में चले गए। थकावट और तनाव के चलते लक्ष्मी की आँखों में आँसू आ गए।

    कुछ देर बाद, जब लक्ष्मी ने रसोई में जाकर देखा तो घर में न दवाइयाँ थीं और न ही रामचरण जी के लिए कोई पौष्टिक भोजन। लक्ष्मी ने अपने बेटे से कहा, “शिव, हमें तुम्हारे पिता के लिए कुछ दवाइयाँ और फल चाहिए।”

    शिव ने बात को टालते हुए जवाब दिया, “माँ, हमारे पास अब इतने पैसे नहीं हैं कि हर किसी की देखभाल कर सकें। आप लोग ही इतने खर्चे करते हो, तो हम कैसे सब संभालें?”

    लक्ष्मी का दिल टूट गया। राधा ने भी ताने कसते हुए कहा, “अम्मा, यह सब नाटक छोड़ो। हमें तो लगता है कि आप लोगों ने यह सब जानबूझकर किया है ताकि हम पर बोझ बन सकें।”

    लक्ष्मी के पास अपने बेटे और बहू की इन कड़वी बातों का कोई जवाब नहीं था। उन्होंने चुपचाप अपने पति की दवाइयों का इंतज़ाम करने के लिए पुराने गहने बेचने का निश्चय किया। एक पत्नी के लिए इससे बड़ी पीड़ा क्या हो सकती थी कि अपने ही घर में अपने पति के इलाज के लिए उसे अपने गहने बेचने पड़े।

    तिरस्कार

    वक्त के साथ, बहू का रवैया घर में और भी बदलने लगा। बहू ने अब केवल लक्ष्मी और रामचरण जी को ही नहीं, बल्कि उनकी बेटी आरती को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया था। आरती, जो कॉलेज की पढ़ाई में तल्लीन थी, सारा समय अपनी पढ़ाई में ही बिताती थी।

    बहू ने आरती को ताने मारने शुरू कर दिए, “इतनी बड़ी हो गई हो, अब शादी क्यों नहीं कर लेती?” एक दिन बहू ने आरती से कहा, “तुम तो बड़ी चालाक हो। हमें तो बहुत अच्छे से पता है कि तुम किसके साथ बाहर जाती हो।” आरती को बेहद धक्का लगा। बहू ने और भी कठोर शब्दों में उसे कहा, “यह घर हमारे नाम पर है और यहाँ कोई तुम्हारी चालबाज़ियाँ नहीं चलने देंगी हम।”

    बहू ने अपने पति यानी आरती के भाई को समझा-बुझा कर इस बात पर राज़ी कर लिया कि वह अपनी बहन की शादी करा दें ताकि वह इस घर से चली जाए। आरती के भाई पर अपनी पत्नी का ऐसा प्रभाव था कि उसने एक दिन अचानक ही आरती से कह दिया, “तुम्हारी शादी एक अच्छे परिवार में करवा रहे हैं और तुम्हें अब इस घर से विदा करना ज़रूरी हो गया है।”

    अंततः, भाई और उसकी पत्नी ने एक गरीब रिक्शा चालक से आरती का विवाह तय कर दिया। आरती ने इस फैसले को भगवान की मर्ज़ी समझकर स्वीकार कर लिया। भाई ने बिना माता-पिता की मर्ज़ी के इस विवाह को जल्दबाज़ी में संपन्न कराया। आरती ने बिना कोई शिकायत किए उस रिक्शा चालक को ही अपना जीवन-साथी मान लिया और ससुराल चली गई।

    आरती के ससुराल जाते ही घर में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था। कुछ ही दिनों में, बहू ने लक्ष्मी और रामचरण जी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह इस घर को छोड़ दें। एक दिन सुबह-सुबह बहू ने बड़े ही कठोर शब्दों में लक्ष्मी से कहा, “अब आरती की शादी हो चुकी है, इस घर में अब आप लोगों का क्या काम है? आप लोग इस घर से चले जाएँ।”

    लक्ष्मी यह सुनकर स्तब्ध रह गईं। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी इस घर में बिता दी थी। बेटे के इस बर्ताव से उन्हें अंदर ही अंदर टूटन महसूस हो रही थी।

    लक्ष्मी ने रामचरण जी का हाथ पकड़कर धीमी आवाज़ में कहा, “आप चिंता मत कीजिए, मैं आपके साथ हूँ। हमें अपने आत्म-सम्मान के लिए इस घर को छोड़ देना चाहिए।”

    बहू की नफरत और बेरुखी अब साफ दिखाई देने लगी थी। एक दिन बहू ने चिढ़ते हुए रामचरण जी से पूछा, “अब कहाँ है आपकी पेंशन की रक़म? घर में पैसे का योगदान भी तो करना चाहिए ना?”

    रामचरण जी ने दर्द भरी नज़रों से बहू को देखा और धीरे से कहा, “सरकारी स्कूल ने मुझे अब सेवा से निलंबित कर दिया है। मैं अब चल नहीं सकता, इसलिए मुझे नौकरी पर वापस बुलाना भी मुमकिन नहीं है।”

    यह सुनते ही बहू के चेहरे पर गुस्सा छा गया। उसने बेरुखी से कहा, “अगर अब आप लोग कमाई नहीं कर सकते, तो क्यों इस घर में रह रहे हैं? खुद का खाना बनाओ, अपने पैसे से लाओ!”

    कुछ दिनों तक रामचरण जी और लक्ष्मी ने जैसे-तैसे अपनी बुरी हालत को सहा, लेकिन बहू का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। एक दिन उसने बेशर्मी से दोनों के सामने शर्त रख दी, “अगर आप लोग अपनी जायदाद मेरे नाम कर देंगे, तो मैं आप लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करूँगी।”

    रामचरण जी ने कड़े शब्दों में जवाब दिया, “मैं तुम्हें अपनी संपत्ति कभी नहीं दूँगा। यह घर मैंने अपने खून-पसीने से बनाया है।”

    उनकी इस दृढ़ता से बहू का अहंकार चूर-चूर हो गया। उसने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा, “तो फिर इस घर से निकल जाओ! तुम्हारी मेरे घर में कोई जगह नहीं है!”

    उस रात अंधेरा गहरा हो चुका था। लक्ष्मी ने अपनी प्यारी साड़ी में से एक कोने को फाड़कर उसे बाँधा और उसमें अपने पति को कुर्सी पर बिठाया। वह धीरे-धीरे अपने पति को लेकर उस अंधेरी सड़क पर निकल पड़ी। रात के सन्नाटे में दोनों की खामोशी मानो उनकी पीड़ा को बयान कर रही थी।

    रास्ते में चलते-चलते, उन्हें वे दिन याद आने लगे जब उनका बेटा और बेटी छोटे थे। वह प्यार, वह देखभाल… आज उनकी यादों में ताज़ा हो रही थी।

    रास्ते में उन्हें एक पुराना मंदिर दिखा, जहाँ जाकर उन्होंने थोड़ी देर आराम करने का निश्चय किया। लक्ष्मी ने भगवान के आगे हाथ जोड़कर प्रार्थना की, “हे भगवान, हमें इस दुख में भी अपने विश्वास को बनाए रखने की ताकत देना।”

    रेलवे स्टेशन के एक कोने में बैठे रामचरण और लक्ष्मी के जीवन की धारा पूरी तरह से बदल चुकी थी। दो दिन से वे रेलवे स्टेशन पर थे, खाना भी ठीक से नहीं मिला था। कभी-कभी कोई करुणा से उन्हें सिक्का दे देता, तो कभी कोई कुछ नहीं कहता।

    इसी बीच, अचानक एक आवाज़ आई, “माँ! पापा!” यह आवाज़ उनके दामाद की थी, वह रिक्शावाला। “आप लोग यहाँ क्या कर रहे हैं? घर से बाहर क्यों हैं?”

    रामचरण और लक्ष्मी ने धीरे से उसे सब कुछ बता दिया। रिक्शावाले दामाद ने गुस्से से कहा, “क्या? आपका बेटा आपको घर से निकाल सकता है? मुझे यकीन नहीं हो रहा। आप दोनों मेरे साथ चलिए, मैं आपको अपने घर ले चलता हूँ। आप मेरे माँ-बाप की तरह हैं।”

    रामचरण और लक्ष्मी को विश्वास नहीं हो रहा था। वे रिक्शे पर बैठकर दामाद के साथ उसके घर की ओर चल पड़े।

    जैसे ही वे दामाद के घर पहुँचे, उनकी बेटी को देखकर उनकी आँखों में आँसू आ गए। उनकी बेटी उन्हें देखकर दौड़ पड़ी और उन्हें गले लगा लिया। “माँ, पापा, आप दोनों यहाँ क्यों आए हैं? क्या हुआ?”

    लक्ष्मी ने गुस्से और दर्द के साथ कहा, “तुम्हारा भाई और उसकी पत्नी ने हमें घर से बाहर निकाल दिया।”

    बेटी का चेहरा गुस्से और दर्द से भर गया था। उसने ठान लिया कि वह इस अपमान का बदला ज़रूर लेगी। “मैं इसका बदला लूँगी, माँ, पापा,” उसने गुस्से से कहा।

    न्याय

    आरती, उनकी बेटी, अब वह भोली-भाली छात्रा नहीं थी। वह अपनी मेहनत और लगन से एक पुलिस अधिकारी बन चुकी थी। उसकी ताकत अब सिर्फ उसकी सहनशीलता में नहीं, बल्कि कानूनी शक्ति में भी थी। लेकिन कार्रवाई करने से पहले, उसे शांत रहने की ज़रूरत थी।

    दो दिन बाद, उसने फैसला किया कि अब समय आ गया है कि वह अपने भाई और बहू का सामना करे। वह अपने माता-पिता को साथ लेकर अपने भाई और बहू के घर पहुँची। जैसे ही वह उनके घर में दाखिल हुई, सबकी निगाहें उन पर थम गईं। भाई और बहू दोनों ही चौंक गए।

    आरती ने बड़े ही ठंडे और कड़े स्वर में कहा, “अब तुम्हें एहसास होगा कि हम जिनसे कभी उम्मीद रखते थे, वे हमें किस हद तक गिरा सकते हैं। तुमने हमारे माता-पिता को घर से बाहर निकाल दिया, लेकिन अब मैं यह सुनिश्चित करूँगी कि तुम ऐसा व्यवहार किसी के साथ दोबारा न कर सको।”

    उस रात, बेटे और बहू के बीच एक गहरी बातचीत चल रही थी। बेटे ने अपनी पत्नी से कहा, “तुम्हारी गलती है। अगर तुम उस दिन उन बूढ़े-बूढ़ियों को सही तरीके से एक्सीडेंट में मार देती, तो आज वे हमारे सामने नहीं होते।”

    बहू की आवाज़ में नफरत और गुस्सा था। “मैंने उस दिन सही तरीके से एक्सीडेंट करने की कोशिश की थी, लेकिन वे बच गए। मुझे उस दिन के बाद से बहुत पछतावा हो रहा है।”

    बेटा सोचने लगा कि अगर वह अपनी बहन और माता-पिता से सही समय पर झूठ बोलकर उन्हें घर से बाहर न करता, तो शायद इस सबका नतीजा कुछ और होता।

    लेकिन आरती चुपके से घर के भीतर चल रही बातें सुन रही थी। उसकी आँखों में गुस्सा और नफरत की आग जल रही थी। अब उसे सब कुछ साफ-साफ समझ में आ गया था। उसने स्थिति को अपने तरीके से हल करने का फैसला किया। अगले कुछ घंटों में, आरती ने पूरी जानकारी जुटा ली। उसने पुलिस को बुलवाया और अपने भाई और बहू की गिरफ्तारी की योजना बनाई।

    अगले ही दिन, पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी के लिए उनके घर पर छापा मारा। बेटा और बहू दोनों को अरेस्ट किया गया और अदालत में पेश किया गया। मामले की जाँच और सबूतों के बाद, अदालत ने फैसला सुनाया। बेटे और बहू को 15 साल की सज़ा सुनाई गई। सज़ा सुनने के बाद, बहू के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था, लेकिन बेटे के चेहरे पर अब गहरी चिंता और पछतावा झलक रहा था। उसे अब एहसास हो चुका था कि जो कुछ भी उसने किया था, वह एक भारी गलती थी।

    यह कहानी एक बड़े परिवार के भीतर के संघर्ष, रिश्तों में छल और सच्चाई के सामने आने की कहानी है। इसने यह साबित किया कि अगर कोई व्यक्ति अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करता है, तो उसे अंत में परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं। इस कहानी का मुख्य संदेश है: किसी भी परिस्थिति में दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना, सम्मान देना और सच्चाई का साथ देना हमेशा सबसे सही तरीका है।

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