क्या होता है जब सत्ता का नशा मोहब्बत के सारे वादों को रौंद देता है?
यह कहानी एक ऐसे भोलेभाले, आदर्शवादी पति की है जिसने अपनी पत्नी के सपनों को पंख देने के लिए अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी, और एक ऐसी महत्वाकांक्षी पत्नी की है जिसने सत्ता की पहली सीढ़ी पर कदम रखते ही अपने उसी पति को धोखा दे दिया।
जब उस पति ने अपनी दुनिया को लुटते हुए देखा, तो वह टूट गया। लेकिन उसे कहाँ पता था कि किस्मत उसे सिर्फ एक हारा हुआ पति नहीं, बल्कि कानून का एक ऐसा ताकतवर सिपाही बनाने वाली है जो सालों बाद जब लौटेगा, तो अपनी उस बेवफा पत्नी और उसके नए साथी के भ्रष्टाचार के साम्राज्य की नींव हिला कर रख देगा।
यह कहानी उस धोखे, उस इंतकाम और उस इंसाफ की है जो यह साबित करती है कि वक्त का पहिया जब घूमता है, तो बड़े-बड़े बादशाहों के ताज भी धूल में मिल जाते हैं।
अध्याय 1: एक phảnघात
इलाहाबाद, गंगा और यमुना के संगम की पवित्र धरती। इसी शहर की एक पुरानी कॉलोनी में एक छोटा सा दो कमरों का क्वार्टर था, जो आदर्श का घर था।
आदर्श, जैसा उसका नाम था, वैसा ही उसका चरित्र था। करीब 30 साल का एक नौजवान, जो एक सरकारी कॉलेज में इतिहास का लेक्चरर था। उसकी दुनिया उसकी किताबों, उसके छात्रों और उसकी पत्नी आरती के इर्द-गिर्द ही घूमती थी। दोनों का प्रेम विवाह हुआ था।
आरती एक खूबसूरत, समझदार और बेहद महत्वाकांक्षी लड़की थी। वह सिर्फ एक गृहिणी बनकर अपनी जिंदगी नहीं गुजारना चाहती थी। उसकी आंखों में राजनीति में जाने का एक जुनून था। वह अक्सर कहती, “आदर्श, मैं इस सड़े-गले सिस्टम को बदलना चाहती हूँ।”
आदर्श अपनी पत्नी के सपने का पूरा सम्मान करता था। उसने अपनी छोटी सी तनख्वाह में से पैसे बचा-बचाकर आरती का दाखिला लॉ कॉलेज में करवाया। वह कॉलेज के बाद घर आता तो आरती के लिए चाय बनाता, घर के कामों में उसका हाथ बंटाता ताकि आरती को पढ़ने के लिए पूरा समय मिल सके। वह उसका सिर्फ पति नहीं, उसका सबसे बड़ा समर्थक था।
लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद, आरती एक स्थानीय नेता के साथ जुड़कर राजनीति में सक्रिय हो गई। उसकी आकर्षक पर्सनालिटी जल्द ही उसे पार्टी के बड़े नेताओं की नजरों में ले आई। आदर्श अपनी पत्नी की इस शुरुआती सफलता को देखकर बहुत खुश होता।
कुछ ही सालों की मेहनत के बाद, पार्टी ने आरती को शहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे दिया। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा मौका था। आदर्श ने अपनी नौकरी से लंबी छुट्टी ले ली और अपना सारा पैसा आरती के चुनाव प्रचार में लगा दिया। वह दिन-रात अपनी पुरानी स्कूटर पर आरती के पोस्टर लेकर शहर की गलियों में घूमता, लोगों से अपनी पत्नी के लिए वोट मांगता।
उसकी मेहनत और आरती की लगन रंग लाई। आरती एक बहुत बड़े अंतर से चुनाव जीत गई। अब वह सिर्फ आरती नहीं, बल्कि ‘माननीय विधायक श्रीमती आरती देवी’ बन चुकी थी। उस रात, आदर्श की आंखों में खुशी के आंसू थे। उसने आरती को गले लगाते हुए कहा, “मुझे तुम पर गर्व है आरती। अब तुम उन सब लोगों के लिए काम करना जिन्होंने तुम पर भरोसा किया है।” आरती मुस्कुराई, लेकिन उसकी मुस्कान में अब सत्ता की चमक थी।
विधायक बनते ही आरती की दुनिया पूरी तरह से बदल गई। उसका उठना-बैठना शहर के बड़े-बड़े अधिकारियों और उद्योगपतियों के साथ होने लगा। उसे लखनऊ में एक बड़ा सा सरकारी बंगला मिल गया। धीरे-धीरे उसका इलाहाबाद आना कम होता गया, और उसकी बातों में प्यार से ज्यादा एक अजीब सी बेरुखी होती।
सच्चाई कुछ और ही थी। आरती सत्ता की इस चकाचौंध में अपने आदर्शों को बहुत पीछे छोड़ आई थी। उसकी मुलाकात हुई राज्य के एक बहुत ही वरिष्ठ और ताकतवर मंत्री, प्रवीण सिंह से। प्रवीण सिंह, करीब 50 साल का एक ऐसा नेता था जो असल में भ्रष्टाचार और बाहुबल की राजनीति का सबसे बड़ा खिलाड़ी था। प्रवीण सिंह ने आरती को आगे बढ़ाने का, उसे मंत्री बनाने का लालच दिया। आरती, जो हमेशा से ताकत की भूखी थी, वह इस जाल में फंसती चली गई। उसे अब अपना सीधा-साधा, आदर्शवादी पति अपने रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा लगने लगा।
एक दिन जब आदर्श बिना बताए लखनऊ वाले बंगले पर पहुँचा, तो उसने दरवाजे पर एक नई नेम प्लेट देखी: ‘आरती सिंह’। और जब उसने बंगले के अंदर आरती को प्रवीण सिंह की बाहों में देखा, तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई।
उस रात आरती ने आदर्श के सामने सब कुछ साफ-साफ कह दिया। “आदर्श, मैं तुमसे तलाक चाहती हूँ। हम दोनों की दुनिया अब बहुत अलग है। प्रवीण जी मुझसे शादी करना चाहते हैं। वो मुझे वो सब कुछ देंगे जो तुम मुझे कभी नहीं दे सकते।” आदर्श एक पत्थर की मूर्ति की तरह यह सब सुनता रहा। उसने खामोशी से तलाक के कागजों पर दस्तखत कर दिए। अगले ही महीने, आरती ने प्रवीण सिंह से शादी कर ली और उसे एक महत्वपूर्ण मंत्रालय भी मिल गया। आदर्श पूरी तरह से टूट चुका था। उसने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और एक गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गया।
अध्याय 2: न्याय की वापसी
सात साल गुजर गए। इन सात सालों में आरती और प्रवीण सिंह की जोड़ी राज्य की राजनीति में सबसे ताकतवर और सबसे भ्रष्ट जोड़ी बन चुकी थी। दूसरी तरफ, आदर्श ने इन सात सालों में खुद को एक नई आग में तपाया था। उसे एहसास हुआ कि आरती ने सिर्फ उसे नहीं, बल्कि लाखों लोगों के विश्वास को भी तोड़ा था। उसने फैसला किया कि वह इस भ्रष्ट सिस्टम से लड़ेगा, सिस्टम के अंदर घुसकर। उसने अपनी सारी ऊर्जा सिविल सर्विसेज की तैयारी में लगा दी।
उसकी मेहनत रंग लाई। उसने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली और उसे भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) मिली। वह जहाँ भी गया, अपनी ईमानदारी और निडर कार्यशैली के लिए जाना गया। और फिर, 7 साल बाद, इंस्पेक्टर आदर्श कुमार बनकर उसी जिले में पोस्ट होकर आया जहाँ उसकी पूर्व पत्नी आरती और उसका पति प्रवीण सिंह अपने भ्रष्टाचार का साम्राज्य चला रहे थे।
आदर्श के आने की खबर से भ्रष्ट अधिकारियों में हड़कंप मच गया। आरती और प्रवीण ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन यह वह पुराना, सीधा-साधा लेक्चरर आदर्श नहीं था। यह इंस्पेक्टर आदर्श कुमार था।
आदर्श ने आते ही उन पुरानी धूल खाती फाइलों को खुलवाना शुरू कर दिया जिनमें आरती और प्रवीण सिंह से जुड़े घोटालों का जिक्र था। उसने एक खुफिया टीम बनाई और उनके हर एक काले कारनामे के खिलाफ सबूत इकट्ठा करना शुरू कर दिया। जांच आगे बढ़ी और भ्रष्टाचार का एक ऐसा विशालकाय दानव सामने आया जिसने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया।
आरती और प्रवीण अब घबराने लगे। उन्होंने आदर्श का ट्रांसफर करवाने की, उसे धमकियां दिलवाने की, यहाँ तक कि उसे खरीदने की भी बहुत कोशिश की। एक रात आरती खुद आदर्श से मिलने उसके सरकारी आवास पर पहुँची। “आदर्श, मुझे माफ कर दो। प्लीज यह केस बंद कर दो।” आदर्श ने बहुत ही शांत लेकिन पत्थर जैसी ठंडी आवाज में जवाब दिया, “मैडम, आप गलत जगह आ गई हैं। यहाँ आपका पुराना पति नहीं, बल्कि कानून का एक सिपाही बैठता है। और आपने इस देश का भरोसा तोड़ा है, आपको इसकी सजा जरूर मिलेगी।”
आखिरकार वो दिन आ ही गया। महीनों की कड़ी मेहनत के बाद, आदर्श और उसकी टीम ने इतने मजबूत सबूत इकट्ठा कर लिए थे कि अब उनका बचना नामुमकिन था। एक सुबह, जब आरती और प्रवीण अपने आलीशान बंगले में जश्न मना रहे थे, तो पुलिस की गाड़ियों के एक बड़े से काफिले ने उनके बंगले को घेर लिया। इंस्पेक्टर आदर्श कुमार अपने हाथ में गिरफ्तारी का वारंट लिए अंदर दाखिल हुआ। “श्रीमती आरती सिंह और श्री प्रवीण सिंह, आपको भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है।” आरती और प्रवीण के चेहरे का रंग उड़ गया। जब पुलिस उन्हें बाहर ले जा रही थी, तो आरती ने एक आखिरी हारी हुई नजर से आदर्श की तरफ देखा। आदर्श ने सिर्फ इतना ही कहा, “कर्मों का हिसाब इसी जिंदगी में देना पड़ता है, आरती।”
कानून ने अपना काम किया। अदालत ने आरती और प्रवीण सिंह को एक लंबी कैद की सजा सुनाई। उनकी सारी अवैध संपत्ति जब्त कर ली गई। आदर