नेकी का इनाम
बेंगलुरु की चमकती सिलिकॉन वैली और हलचल भरी सड़कों के बीच, जहाँ कॉर्पोरेट ऑफिसों की ऊँची इमारतें और कॉफ़ी की दुकानों की खुशबू शहर की कहानी बुनती थी, एक साधारण महिला अपने सपनों और जिम्मेदारियों के बीच जूझ रही थी। प्रिया, जिसका दिल हमेशा दूसरों की मदद के लिए धड़कता था, एक टेक कंपनी में जूनियर मैनेजर थी। उसका सपना था अपने छोटे भाई को इंजीनियर बनाना और अपने माता-पिता को बेहतर ज़िंदगी देना।
एक व्यस्त सुबह, जब वह एक ज़रूरी मीटिंग के लिए दौड़ रही थी, एक अनजान आदमी जो सड़क पर घायल पड़ा था, उसकी नज़रों में आया। प्रिया ने बिना सोचे उसकी मदद की। मगर इस नेकी की कीमत उसे अपनी नौकरी गँवा कर चुकानी पड़ी। फिर एक दिन, एक अनजान कॉल ने उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। वो आदमी कौन था? उस कॉल में ऐसा क्या था जिसने प्रिया की किस्मत पलट दी? क्या उसकी नेकी उसे इनाम देगी या उसे किसी अनजान राज़ से जोड़ेगी? आइए सुनते हैं इस दिल को छू लेने वाली कहानी को, जो आपकी आँखें नम कर देगी और आपके दिल में एक नई उम्मीद जगा देगी।
बेंगलुरु, जहाँ सुबह की भागदौड़ और रात की चमक एक-दूसरे से गले मिलती थी, प्रिया की कर्मभूमि थी। 27 साल की प्रिया, जिसका चेहरा सादगी से भरा था, मगर आँखें बुद्धिमत्ता और दृढ़ संकल्प से चमकती थीं। वह एक प्रतिष्ठित टेक कंपनी में जूनियर मैनेजर थी। उसकी मेहनत और लगन ने उसे कम उम्र में यह मुकाम दिलाया था। हर सुबह प्रिया अपने छोटे से अपार्टमेंट से निकलती, मेट्रो पकड़ती और अपने ऑफिस की दुनिया में खो जाती। मगर उसका दिल हमेशा दूसरों की मदद के लिए बेचैन रहता। चाहे ऑफिस में किसी सहकर्मी का काम हो या सड़क पर किसी ज़रूरतमंद की मदद, प्रिया कभी पीछे नहीं हटती थी।
उसका परिवार मंगलुरु के एक छोटे से गाँव में रहता था। उसके माता-पिता, रमेश और सावित्री, खेती करते थे और उसका छोटा भाई, अजय, 12वीं कक्षा में पढ़ता था। प्रिया की सारी कमाई अजय की पढ़ाई और परिवार के खर्च पर जाती थी। उसका सपना था कि अजय एक दिन इंजीनियर बने ताकि उनके परिवार को गरीबी से छुटकारा मिले।
प्रिया की ज़िंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था, सिवाय इसके कि उसका बॉस, मिस्टर राय, उससे हमेशा नाराज़ रहता था। वह चाहता था कि प्रिया सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान दे, न कि दूसरों की मदद करने पर।
उस दिन अप्रैल की एक व्यस्त सुबह थी। बेंगलुरु की सड़कें ट्रैफ़िक से भरी थीं और आसमान में बादल छाए थे। प्रिया को अपने ऑफिस में एक ज़रूरी प्रेजेंटेशन देना था, जिस पर उसकी प्रमोशन टिकी थी। वह मेट्रो से उतर कर तेज़ी से अपने ऑफिस की ओर दौड़ रही थी, उसका बैग कंधे पर लटका था और हाथ में कॉफ़ी का कप।
तभी एमजी रोड के एक सिग्नल पर उसकी नज़र सड़क के किनारे पड़े एक आदमी पर पड़ी। उसकी उम्र 50 के आसपास थी, उसके कपड़े फटे थे और वह खून से लथपथ था। उसके पास कोई नहीं था और राहगीर उसे नज़रअंदाज़ कर रहे थे। प्रिया का दिल धक से रह गया। वह एक पल रुकी। उसका दिमाग चिल्ला रहा था, “प्रिया, मत रुक! तुम्हारी मीटिंग है! तुम्हारी नौकरी दाँव पर है!” मगर उसका दिल कह रहा था, “इस आदमी को मदद चाहिए।”
उसने कॉफ़ी का कप फेंका और आदमी के पास दौड़ी। “अंकल, आप ठीक हैं? क्या हुआ?”
आदमी ने कमज़ोर आवाज़ में कहा, “मुझे… एक बाइक ने टक्कर मार दी। मेरा पैर…”
प्रिया ने देखा कि उसका पैर बुरी तरह ज़ख्मी था। उसने तुरंत अपने फ़ोन से एम्बुलेंस को कॉल किया, मगर एम्बुलेंस को आने में समय लगने वाला था। प्रिया ने पास खड़े एक ऑटो वाले से मदद माँगी। “भैया, इसे अस्पताल ले चलो! मैं आपके साथ आती हूँ!”
ऑटो वाला हिचक रहा था, मगर प्रिया की गुहार पर मान गया। उसने आदमी को सहारा देकर ऑटो में बिठाया और नज़दीकी अस्पताल की ओर दौड़ा। रास्ते में प्रिया ने आदमी का हाथ पकड़ा। “अंकल, डरो मत। आप ठीक हो जाओगे। आपका नाम क्या है?”
“कृष्ण… कृष्णमूर्ति,” उसने धीरे से कहा।
अस्पताल पहुँचते ही प्रिया ने उसे इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करवाया। डॉक्टरों ने बताया कि कृष्ण का पैर टूट गया था, मगर वह ख़तरे से बाहर था। प्रिया ने राहत की साँस ली। कृष्ण ने उसकी ओर देखा, आँखों में कृतज्ञता थी। “बेटी, तूने मेरी जान बचाई। मगर तुझे तो कहीं जाना था।”
प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, “कोई बात नहीं, अंकल। आप ठीक हो, यही मेरे लिए काफ़ी है।”
मगर तभी उसका फ़ोन बजा। मिस्टर राय का कॉल था। प्रिया का दिल बैठ गया।
“प्रिया, तुम कहाँ हो? प्रेजेंटेशन शुरू हो चुका है!” मिस्टर राय चिल्ला रहे थे।
“सर, मैं… एक इमरजेंसी थी। मैं अभी आ रही हूँ,” प्रिया ने घबराते हुए कहा।
“कोई बहाना नहीं! तुम्हारी वजह से क्लाइंट नाराज़ है। ऑफिस पहुँचो, वरना नौकरी गई!” मिस्टर राय ने फ़ोन काट दिया।
प्रिया ने कृष्ण की ओर देखा, जो अब नर्सों की देखरेख में था। उसने सोचा कि वह अब ऑफिस पहुँच जाएगी। मगर जब वह ऑफिस पहुँची, तो मीटिंग खत्म हो चुकी थी। मिस्टर राय ने उसे अपने केबिन में बुलाया।
“प्रिया, तुमने कंपनी का भरोसा तोड़ा। तुम्हारी वजह से हम क्लाइंट खो सकते हैं। तुम फायर्ड हो।”
प्रिया की आँखें भर आईं। “सर, मैंने एक आदमी की जान बचाई। प्लीज़ मुझे एक मौका दीजिए…”
“यहाँ भावनाओं की जगह नहीं है,” मिस्टर राय ने सख़्ती से कहा। “तुम जा सकती हो।”
प्रिया रोते हुए ऑफिस से निकली। उसका दिल टूट चुका था। उसने अपने परिवार के लिए इतने सपने देखे थे, मगर अब सब बिखर गया था। वह घर पहुँची और अपनी सहेली, नेहा, को सारी बात बताई।
“प्रिया, तूने जो किया वह सही था,” नेहा ने उसे सांत्वना दी। “भगवान तेरे लिए कुछ और सोच रहा है।”
“मगर नेहा,” प्रिया ने सिसकते हुए कहा, “अब मैं अजय की फ़ीस कैसे दूँगी? मम्मी-पापा को क्या जवाब दूँगी?”
उस रात प्रिया का मन भारी था। उसने सोचा कि शायद उसकी नेकी एक ग़लती थी।
मगर अगले दिन दोपहर को, उसके फ़ोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आई। उसने हिचकते हुए फ़ोन उठाया।
“हेलो… प्रिया? मैं कृष्णमूर्ति बोल रहा हूँ। तुमने कल मेरी जान बचाई थी।”
“अंकल!” प्रिया ने हैरानी से कहा। “आप ठीक हैं? आपको मेरा नंबर कैसे मिला?”
कृष्ण ने हँसकर कहा, “बेटी, अस्पताल में तूने मेरा फ़ॉर्म भरा था। मैं तुझसे मिलना चाहता हूँ। क्या तू मेरे ऑफिस आ सकती है?”
“आपका ऑफिस?” प्रिया उलझन में थी।
“हाँ, मैं एक स्टार्टअप का फ़ाउंडर हूँ। मेरा ऑफिस कोरमंगला में है। कृपया आ जा।”
प्रिया को समझ नहीं आया कि क्या करे, मगर उसने हिम्मत जुटाई और उस पते पर पहुँची। वहाँ एक चमकता हुआ ऑफिस था जिसके बाहर “टेक ट्रेंड इनोवेशंस” लिखा था। कृष्ण उसे अपने केबिन में ले गए। वह अब व्हीलचेयर पर थे, मगर उनका चेहरा आत्मविश्वास से भरा था।
“प्रिया,” कृष्ण ने शुरू किया। “मैंने तेरे बारे में पूछा। मुझे पता चला कि तूने मेरी मदद करने के लिए अपनी नौकरी गँवा दी।”
प्रिया ने सिर झुकाया। “अंकल, मैंने बस वही किया जो सही था।”
“बेटी,” कृष्ण ने मुस्कुरा कर कहा, “तुझ में वह जज़्बा है जो मेरी कंपनी को चाहिए। मैं चाहता हूँ कि तू मेरे साथ काम करे।”
प्रिया की आँखें चौड़ी हो गईं। “अंकल, मैं… मैं तो बस एक जूनियर मैनेजर थी।”
“और मैं,” कृष्ण ने हँसकर कहा, “एक सड़क पर पड़ा घायल आदमी था। प्रिया, मैं तुझे अपनी कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर बनाना चाहता हूँ। तेरा वेतन तेरी पुरानी नौकरी से दोगुना होगा।”
प्रिया का गला भर आया। “अंकल, यह… मैं नहीं ले सकती।”
कृष्ण ने उसका कंधा पकड़ा। “बेटी, यह मेरा धन्यवाद है। और एक बात… मैं तुझे अपने स्टार्टअप के ‘सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम’ की ज़िम्मेदारी भी देना चाहता हूँ। हम ग़रीब बच्चों को टेक्नोलॉजी सिखाते हैं। मुझे विश्वास है कि तू इसे सँभाल सकती है।”
प्रिया की आँखों में आँसू आ गए। उसने कृष्ण के पैर छुए। “अंकल, मैं आपका ज़िंदगी भर एहसान नहीं भूलूँगी।”
मगर कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। कृष्ण की सच्चाई में एक और राज़ था, और प्रिया की नेकी का इनाम अभी पूरा नहीं हुआ था। उनका सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम क्या छिपा रहा था, और प्रिया का यह नया रास्ता उसे कहाँ ले जाएगा?
प्रिया की सड़क पर घायल कृष्णमूर्ति की मदद ने बेंगलुरु की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में एक नया मोड़ ला दिया था। अपनी नौकरी गँवाने की कीमत पर की गई उसकी नेकी, अब कृष्ण की कंपनी टेक ट्रेंड इनोवेशंस में प्रोजेक्ट मैनेजर की ज़िम्मेदारी और सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम की कमान के रूप में सामने आई। दोगुना वेतन, अजय की पढ़ाई का रास्ता और परिवार के लिए नई उम्मीद – यह सब प्रिया के लिए किसी सपने से कम नहीं था।
मगर कृष्ण की सच्चाई में एक गहरा राज़ अभी बाकी था। उनका सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम क्या छिपा रहा था? और क्या प्रिया की नेकी का इनाम उसकी ज़िंदगी को और ऊँचाइयों तक ले जाने वाला था? क्या यह नया रास्ता सिर्फ़ एक शुरुआत था, या कोई अनजान चमत्कार उसका इंतज़ार कर रहा था?
अगली सुबह, प्रिया टेक ट्रेंड इनोवेशंस के ऑफिस पहुँची। कोरमंगला का वह चमकता ऑफिस टेक्नोलॉजी और सपनों का मेल था। काँच की दीवारें, रंग-बिरंगे वर्क स्टेशन और कर्मचारियों की हलचल, सब कुछ प्रिया के लिए नया था। कृष्ण ने उसे अपनी टीम से मिलवाया: “प्रिया हमारी नई प्रोजेक्ट मैनेजर है, और हमारा सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम भी वही सँभालेगी।”
टीम ने प्रिया का गर्मजोशी से स्वागत किया। हल्की झिझक के साथ ही, प्रिया ने काम शुरू किया। वह प्रोजेक्ट्स की डेडलाइन सँभालती, क्लाइंट से मीटिंग्स करती, और शाम को सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम की प्लानिंग में जुट जाती। कृष्ण का यह प्रोग्राम ग़रीब बच्चों को कोडिंग और टेक्नोलॉजी सिखाता था, ताकि वे सिलिकॉन वैली जैसे सपनों को छू सकें। प्रिया को यह काम अपने दिल के करीब लगा।
कुछ ही हफ़्तों में, प्रिया ने अपनी मेहनत से सबका दिल जीत लिया। अजय की स्कूल फ़ीस अब समय से जमा हो रही थी, और प्रिया ने अपने माता-पिता को मंगलुरु से बेंगलुरु बुलाने की योजना बनाई। उसका छोटा सा अपार्टमेंट अब हँसी और उम्मीद से भरा था।
मगर प्रिया का मन अभी भी कृष्ण की कहानी को लेकर बेचैन था। वह सड़क पर घायल क्यों पड़ा था? और उनका यह प्रोग्राम इतना ख़ास क्यों था?
एक दिन, कृष्ण ने प्रिया को अपने केबिन में बुलाया। उनका चेहरा गंभीर था। “प्रिया, मुझे तुझसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। मेरे प्रोग्राम की सच्चाई के बारे में।”
प्रिया का दिल धक से रह गया। “सच्चाई, सर?”
कृष्ण ने गहरी साँस ली। “प्रिया, 20 साल पहले, मैंने अपनी बहन लक्ष्मी को खो दिया। वह सिर्फ़ 16 साल की थी, एक ग़रीब बस्ती में रहती थी और उसे पढ़ने का बहुत शौक था। मगर एक दिन, वह सड़क पर एक हादसे में घायल हो गई। कोई उसे अस्पताल नहीं ले गया। अगर उस दिन कोई उसे बचा लेता, तो शायद वह आज ज़िंदा होती।”
प्रिया की आँखें नम हो गईं। “सर, मुझे नहीं पता था…”
“उस हादसे ने मुझे तोड़ दिया,” कृष्ण ने आगे कहा। “मैंने ठान लिया कि मैं उन बच्चों की मदद करूँगा जिनके पास कोई नहीं। यह प्रोग्राम लक्ष्मी की याद में शुरू किया गया। मगर उस दिन, जब मैं सड़क पर घायल पड़ा था, मुझे लगा कि मेरी कहानी भी वहीं खत्म हो जाएगी। तूने मुझे न सिर्फ़ बचाया, बल्कि मेरे मक़सद को ज़िंदा रखा।”
कृष्ण ने एक पुरानी तस्वीर निकाली। उसमें एक लड़की मुस्कुरा रही थी। “यह लक्ष्मी थी। मैं चाहता हूँ कि तू इस प्रोग्राम को और बड़ा करे। तुझ में वह जज़्बा है जो लक्ष्मी में था।”
“मैं वादा करती हूँ, सर,” प्रिया ने भर्राई आवाज़ में कहा। “मैं इस प्रोग्राम को दुनिया तक ले जाऊँगी।”
अगले कुछ महीनों में, प्रिया ने जी-जान से काम किया। उसने सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम को बेंगलुरु की बस्तियों से निकालकर कर्नाटक के गाँवों तक पहुँचाया। सैकड़ों बच्चे अब कोडिंग सीख रहे थे, और कुछ ने तो स्टार्टअप्स में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी।
एक दिन, कृष्ण ने प्रिया को एक समारोह में बुलाया। वहाँ बेंगलुरु के बड़े बिज़नेसमैन और सरकारी अधिकारी थे। कृष्ण ने मंच पर प्रिया को बुलाया। “यह प्रिया है, जिसने एक अनजान आदमी की जान बचाई और आज हमारे प्रोग्राम को नई ऊँचाइयों तक ले गई। मैं घोषणा करता हूँ कि प्रिया अब टेक ट्रेंड इनोवेशंस की डायरेक्टर ऑफ़ ऑपरेशंस होगी!”
प्रिया की साँस रुक गई। उसने माइक पकड़ा, “मैंने सिर्फ़ एक घायल आदमी की मदद की थी। मगर आप सब ने मुझे इतना प्यार दिया। यह मेरी नहीं, मेरे भाई अजय और उन बच्चों की जीत है जो अब अपने सपने जी रहे हैं।”
समारोह के बाद, एक बूढ़ी औरत प्रिया के पास आई। “बेटी, मैं कृष्ण की माँ हूँ। तूने मेरे बेटे को बचाया और लक्ष्मी के सपने को ज़िंदा रखा।”
“माँ जी, यह मेरा सौभाग्य है,” प्रिया ने उनके पैर छुए।
कृष्ण की माँ ने कहा, “कृष्ण ने मुझे बताया कि तू अपने माता-पिता को बेंगलुरु लाना चाहती है। मेरे पास मंगलुरु में एक छोटा सा घर है, मैं चाहती हूँ कि तू उसे ले ले।”
प्रिया का गला भर आया। कृष्ण ने हँसकर कहा, “प्रिया, यह मेरा नहीं, लक्ष्मी का आशीर्वाद है।”
अगले कुछ सालों में, प्रिया ने टेक ट्रेंड इनोवेशंस को एक ग्लोबल कंपनी बना दिया। उसका सोशल इम्पैक्ट प्रोग्राम अब हज़ारों बच्चों को टेक्नोलॉजी सिखा रहा था। अजय ने इंजीनियरिंग में दाख़िला लिया और प्रिया के माता-पिता बेंगलुरु में उनके साथ रहने लगे। मिस्टर राय, उसके पुराने बॉस, ने जब उसकी सफलता की ख़बर सुनी, तो उसे फ़ोन किया: “प्रिया, मुझे माफ़ कर दो। तूने जो किया, वह सही था।”
प्रिया ने मुस्कुरा कर कहा, “सर, मैंने सिर्फ़ अपने दिल की सुनी।”
एक दिन, जब प्रिया अपने ऑफिस से निकल रही थी, एक लड़का सड़क पर गिर पड़ा। उसका पैर ज़ख्मी था। प्रिया दौड़ कर उसके पास गई। “बेटा, डरो मत। मैं तुझे अस्पताल ले जाऊँगी।”
लड़के ने उसकी ओर देखा। “दीदी, तुम बहुत अच्छी हो।”
प्रिया ने हँसकर कहा, “बस तू ठीक हो जा, यही मेरे लिए काफ़ी है।”
प्रिया की एक छोटी सी नेकी ने न सिर्फ़ उसकी ज़िंदगी बदली, बल्कि सैकड़ों बच्चों के सपनों को पंख दिए। यह कहानी हमें सिखाती है कि एक मदद का हाथ, एक सही फ़ैसला, किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है। प्रिया ने सिर्फ़ एक अनजान की मदद की, मगर उसकी वह नेकी ने बेंगलुरु की सड़कों पर एक नई रोशनी जला दी।