जब रात के अंधेरे में Inspector को मिली एक लड़की फिर जो हुआ….
अंधेरे की चुनौती: मायरा की हिम्मत और न्याय की जीत
1. शादी की रात और मायरा की वापसी
रात के करीब 11:00 बज रहे थे। शहर के सबसे बड़े होटल में डीएम आशीष चौधरी की बेटी मायरा अपनी दोस्त की शादी में शामिल थी। मायरा की खूबसूरती और सादगी के चर्चे पूरे शहर में थे। उसकी मुस्कान में मासूमियत थी और चाल में आत्मविश्वास। पार्टी में दोस्तों के साथ मस्ती, डांस और हंसी-मजाक में वह पूरी तरह खो गई थी।
तभी अचानक उसके फोन पर कॉल आया। दूसरी तरफ से घबराई हुई आवाज थी—”मायरा, तुम्हारी मां की तबीयत अचानक बिगड़ गई है। तुम जल्दी घर आ जाओ।”
यह सुनते ही मायरा का दिल घबरा गया। उसने किसी को बिना बताए पार्टी से निकलने का फैसला किया और जल्दबाजी में अकेली ही घर की तरफ निकल पड़ी। उसके मन में मां की चिंता और रात के अंधेरे का डर दोनों साथ थे।
2. सुनसान सड़क और पुलिस की जीप
रात के सन्नाटे में मायरा अपनी स्कूटी लेकर सुनसान सड़क पर निकल पड़ी। सड़क पर इक्का-दुक्का गाड़ियां जा रही थीं। दूर से उसे एक पुलिस की गाड़ी दिखाई दी, जिसकी लाल-नीली लाइटें चमक रही थीं। उसे थोड़ी राहत मिली—”चलो, रास्ते में पुलिस मिल गई, अब डरने की जरूरत नहीं।”
लेकिन उसे यह पता नहीं था कि जिस सहारे की उम्मीद वह कर रही है, वही उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनने वाला था।
जैसे ही वह गाड़ी के करीब पहुंची, देखा कि सड़क किनारे पुलिस की जीप खड़ी है और उसके पास एक इंस्पेक्टर अपने चार-पांच सिपाहियों के साथ बैठा हुआ है। सबके हाथों में शराब की बोतलें थीं। वे जोर-जोर से हंस रहे थे, ऊंटपटांग बातें कर रहे थे और नशे में धुत माहौल बिगाड़ रहे थे।
3. पुलिस की बेशर्मी और मायरा का डर
मायरा की नजर जैसे ही उन पर पड़ी, इंस्पेक्टर ने भी उसे देख लिया। उसकी आंखें मायरा पर ठहर गईं। वह हवलदार से हंसते हुए बोला—
“अरे देखो, कैसी हसीन परी चली आ रही है। आज तो मजे ही मजे हैं। यह तो जैसे स्वर्ग से उतरी हुई है। इसे ऐसे ही कैसे जाने दें?”
इतना कहते ही इंस्पेक्टर और उसके सिपाही मायरा के रास्ते में आकर खड़े हो गए। इंस्पेक्टर नशे में लड़खड़ाते हुए मायरा का हाथ पकड़ लेता है। उसकी आंखों में गंदी चमक थी।
“इतनी खूबसूरत लड़की रात के अंधेरे में कहां चली जा रही है? अरे हम पर भी कभी ध्यान दो। तुम्हारी अदाओं का हम दीवाना हो चुके हैं। अब तो बर्दाश्त नहीं होता मेरी जान। बस एक बार हम पर रहम कर दो।”
मायरा इस बेहूदा स्पर्श से सहम जाती है। उसने तुरंत झटके से अपना हाथ छुड़ाया और पीछे हटती हुई गुस्से और डर के मिलेजुले भाव से बोली—
“देखिए, मुझे घर जाना है। मैं एक शरीफ लड़की हूं और आप एक इंस्पेक्टर होकर इस तरह की हरकत कर रहे हैं। आपका काम देश की रक्षा करना है, लेकिन आप तो खुद ही अपराध कर रहे हैं। मुझे रास्ता दीजिए, मुझे अपनी मां के पास जाना है। उनकी तबीयत खराब है।”
मायरा साइड से निकलने की कोशिश करती है, लेकिन इंस्पेक्टर फिर से उसका हाथ कसकर पकड़ लेता है और जोर से अपनी तरफ खींच लेता है। अब मायरा का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसकी आंखों में आंसू छलक आए।
4. हिम्मत और सच का सामना
उसने कांपती हुई आवाज में कहा—
“प्लीज सर, मुझे छोड़ दीजिए। मुझे घर जाना है। मेरी मां की हालत बहुत खराब है। आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? आप तो मुझे बचाने के लिए हैं, फिर क्यों मुझे डराते हैं?”
लेकिन इंस्पेक्टर उसकी विनती सुनने के मूड में नहीं था। वह मायरा की आंखों में देखकर और भी बेशर्मी से बोला—
“अगर तुम हमें छोड़कर चली गई तो मैं जी नहीं पाऊंगा। तुम्हारी खूबसूरती ने मुझे पागल कर दिया है। बस एक बार मुझे खुश कर दो, फिर चली जाना।”
पास खड़ा एक हवलदार बीच में बोला—
“सर, यह लड़की इतनी नखरे क्यों दिखा रही है? इसे समझाओ। सर जो कह रहे हैं वही करो। और सुनो लड़की, तुम क्या समझती हो? ऐसे ही यहां से चली जाओगी? नहीं। जब तक हम खुश नहीं होते, तुम कहीं नहीं जा सकती। समझी?”
इन गंदी बातों को सुनकर मायरा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसका पूरा शरीर डर से कांप रहा था। अब उसे साफ समझ आ गया कि ये लोग उसे ऐसे ही नहीं छोड़ने वाले।
उसके भीतर घबराहट और गुस्से का तूफान उमड़ पड़ा। उसने मन ही मन तय कर लिया कि अब उसे इन्हें सच बताकर डराना होगा।
हिम्मत जुटाते हुए उसने ऊंची आवाज में कहा—
“बस बहुत हुआ! आप लोग बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। आप लोग कानून तोड़ रहे हैं, अपराध कर रहे हैं। मुझे जानते नहीं हैं आप लोग। मैं इस जिले के डीएम आशीष चौधरी की बेटी मायरा हूं। अगर मेरे पापा को आपकी इस हरकत के बारे में पता चला तो आप सबकी खैर नहीं।”
उसकी आवाज गुस्से से भरी थी, लेकिन अंदर से वह अभी भी बहुत डरी हुई थी।
5. पुलिस का शक और मायरा की लड़ाई
इंस्पेक्टर उसकी बात सुनकर ठहाका मारकर हंस पड़ा—
“ओहो, तो तू डीएम की बेटी है। लेकिन तुझे देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता। डीएम की बेटियां ऐसे कपड़े पहनती हैं क्या? वो तो मॉडर्न ड्रेसेस में घूमती हैं। और तू सलवार सूट पहनकर गांव की लड़की लग रही है। मुझे बेवकूफ मत बना। झूठ बोलना बंद कर।”
अब मायरा अच्छी तरह समझ चुकी थी कि इन पुलिस वालों को समझाना उसके बस की बात नहीं है। वे सब नशे में धुत थे और उनकी नियत बेहद खराब थी।
उसके मन में डर बैठ चुका था कि कहीं ये लोग जबरदस्ती उस पर गलत हरकत ना कर दें।
अचानक उसने हिम्मत जुटाई और इंस्पेक्टर का हाथ कसकर पकड़ कर जोर से दांत से काट लिया। इंस्पेक्टर दर्द से चीख उठा और मायरा ने मौका पाकर अपना हाथ छुड़ाया और पूरी ताकत से दौड़ पड़ी।
6. भागदौड़ और संघर्ष
सुनसान सड़क पर उसकी सांसे तेज-तेज चल रही थी। वह जान बचाकर भाग रही थी। मगर पीछे से इंस्पेक्टर गरजती आवाज में चिल्लाया—
“क्या देख रहे हो बे? पकड़ो उसे, भागने ना पाए!”
सारे हवलदार लड़खड़ाते कदमों से उसके पीछे दौड़ पड़े। नशे में होने की वजह से वे तेज नहीं भाग पा रहे थे। मगर उनमें से एक जवान था जिसने दौड़ते-दौड़ते मायरा को पकड़ लिया और जबरदस्ती उसे खींच कर इंस्पेक्टर के सामने ला खड़ा किया।
इंस्पेक्टर बुरी तरह गुस्से से तमतमा उठा। उसने मायरा को देखते ही जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। मायरा का चेहरा एक तरफ झुक गया। आंखों में आंसू भर आए।
“तेरी इतनी हिम्मत हमसे बचकर भागेगी तू? बहुत नखरे कर लिए तूने। अब तो तेरा बचना नामुमकिन है। मेरी बात मान ले वरना आज जिंदा घर नहीं जा पाएगी। समझी?”
मायरा की आंखों में अब डर साफ दिख रहा था। वह कांपते हुए बोली—
“देखो, आप लोग बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। आपको लगता है मेरे पापा डीएम नहीं हैं तो थोड़ी देर रुक जाओ। मेरे पापा मुझे लेने जरूर आएंगे और जब वह आ गए ना तब देखना आप लोग कैसे बचोगे।”
इतना कहकर मायरा ने अचानक जोर लगाकर फिर से हाथ छुड़ाया और भागने लगी। इस बार वह पहले से भी तेज दौड़ रही थी। इंस्पेक्टर और उसके हवलदार उसके पीछे भागते रहे। कुछ ही दूरी पर जाकर इंस्पेक्टर ने उसे फिर पकड़ लिया। उसने मायरा का हाथ कसकर दबा दिया और एक और थप्पड़ जड़ दिया।
“भागने की कोशिश मत कर। जितना भी चाहे दौड़ ले, अब तू मेरे हाथ से बच नहीं सकती। समझी?”
7. न्याय का आगमन
इंस्पेक्टर की यह बात पूरी होती ही थी कि सामने से अचानक एक गाड़ी की तेज रोशनी दिखाई दी। गाड़ी की आवाज सुनकर मायरा का दिल जोर से धड़क उठा। उसने उम्मीद भरी आवाज में चिल्ला कर कहा—
“अब आप लोग कैसे बचोगे, देख लेना। मेरे पापा आ गए हैं। अब तुम सबकी खैर नहीं।”
गाड़ी जोर की ब्रेक के साथ सामने रुकी। दरवाजा खुला और बाहर उतरे जिले के सबसे बड़े अधिकारी डीएम आशीष चौधरी। उनका चेहरा गुस्से से लाल था।
उन्होंने उतरते ही इंस्पेक्टर को घूरते हुए गरज कर कहा—
“इंस्पेक्टर, मेरी बेटी को तुरंत छोड़ो!”
इंस्पेक्टर पहली बार डीएम से आमने-सामने हो रहा था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सच में डीएम है। मगर उसके साथ खड़े हवलदार के चेहरे का रंग उड़ चुका था। वह तुरंत इंस्पेक्टर के कान में फुसफुसाया—
“सर, यह सच में डीएम साहब हैं। आप जल्दी लड़की को छोड़ दीजिए वरना हम सबकी खैर नहीं।”
इंस्पेक्टर सकपका गया। फिर भी नशे में अकड़ दिखाते हुए बोला—
“तू कौन होता है बे? तुझे अंदर कर दूंगा। यह लड़की कहीं नहीं जाएगी। यह यहीं रहेगी मेरे साथ।”
डीएम का गुस्सा अब चरम पर था। उन्होंने तमतमा कर कहा—
“तू खुद को इंस्पेक्टर कहता है या दरिंदा? तू सड़क पर लड़कियों को छेड़ रहा है और ऊपर से मेरी बेटी पर हाथ डाल रहा है। अब तेरी वर्दी भी नहीं बचेगी और तू भी नहीं। कल ही तेरी जगह जेल होगी और वहीं सड़ेगा तू।”
इतना सुनते ही इंस्पेक्टर के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने डरते-डरते मायरा का हाथ छोड़ दिया और डीएम के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा—
“सर, मुझे माफ कर दीजिए। मुझे नहीं पता था कि यह आपकी बेटी है। मैंने सोचा यह कोई आम लड़की है। मैंने कोई गलत काम नहीं किया सर। मैं बस मजाक कर रहा था।”
मायरा बीच में रोते गुस्से से बोली—
“नहीं पापा, यह झूठ बोल रहा है। यह इंस्पेक्टर बहुत गिरा हुआ इंसान है। इसने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है। इसे मत छोड़िएगा।”
डीएम ने इंस्पेक्टर की ओर घूर कर कहा—
“तेरी वर्दी देखकर मुझे शर्म आ रही है। तू कानून का रखवाला नहीं बल्कि कानून का भक्षक है। कल सुबह 10:00 बजे प्रेस मीटिंग होगी। वहां पूरे जिले के अधिकारी और मीडिया मौजूद रहेंगे। वहीं तेरी असली औकात सबके सामने लाऊंगा। याद रख अब तेरे लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है।”
इतना कहकर डीएम आशीष चौधरी ने मायरा का हाथ थामा और उसे लेकर गाड़ी में बैठ गए। पीछे खड़े इंस्पेक्टर और उसके हवलदारों के होश उड़ चुके थे। सबकी हालत खराब थी। उन्हें साफ लग रहा था कि अब उनका करियर खत्म होने वाला है।
8. प्रेस मीटिंग और न्याय की घोषणा
सुबह होते ही जिले के सबसे बड़े प्रेस मीटिंग हॉल में बैठक बुलाई गई। मीडिया रिपोर्टर, बड़े-बड़े मंत्री और तमाम पुलिस अधिकारी मौजूद थे। बीच में डीएम आशीष चौधरी बैठे थे। उनके दाई ओर उनकी बेटी मायरा और बाई ओर जिले की तेज तर्रार आईपीएस अफसर नंदिनी सिंह मौजूद थी।
माहौल पूरी तरह सन्नाटे में डूबा था। सबको इंतजार था कि अब डीएम क्या फैसला सुनाएंगे।
डीएम ने माइक उठाया और गंभीर आवाज में बोले—
“आज मैं सिर्फ डीएम के तौर पर नहीं बल्कि एक पिता और गवाह के तौर पर भी यहां बैठा हूं। कल रात मेरी बेटी मायरा के साथ जो हुआ वो सिर्फ मेरी बेटी के साथ अन्याय नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए एक शर्मनाक घटना है। पुलिस का काम जनता की रक्षा करना है। लेकिन जब वही लोग अपराध करने लगे तो यह पूरे विभाग पर धब्बा है। इसीलिए मैं आज सबूतों के साथ यह केस आपके सामने रख रहा हूं।”
उन्होंने सबूत पेश किए—मेडिकल रिपोर्ट जिसमें मायरा के चेहरे और हाथ पर चोट दर्ज थी। मोबाइल वीडियो जिसमें इंस्पेक्टर और हवलदार मायरा को पकड़ते और धक्का देते साफ दिख रहे थे।
“मैं खुद गवाह हूं। मैंने मौके पर जाकर अपनी बेटी को छुड़ाया और इंस्पेक्टर को रंगे हाथ पकड़ा। यह अपराध साफ-साफ साबित है।”
इसके बाद डीएम ने मायरा की तरफ देखा और कहा—
“अब मायरा खुद अपनी बात आप सबको बताएगी।”
मायरा ने माइक संभाला। वह थोड़ी घबराई हुई थी, लेकिन हिम्मत दिखाते हुए बोली—
“मैं कल रात घर जा रही थी। तभी इंस्पेक्टर और उसके साथियों ने मेरा रास्ता रोका। पहले उन्होंने बदतमीजी की, फिर मुझे जबरदस्ती पकड़ने लगे। मैंने बार-बार कहा कि मुझे घर जाना है, मेरी मां बीमार है। लेकिन वह लोग नहीं माने। मुझे थप्पड़ मारा, खींचा और धमकाया कि अगर मैं उनकी बात नहीं मानूंगी तो मुझे जिंदा घर वापस नहीं जाने देंगे। मैं बहुत डर गई थी। जब मैंने बताया कि मैं डीएम की बेटी हूं तो भी वह लोग मजाक उड़ाते रहे। अगर पापा समय पर नहीं पहुंचते तो पता नहीं आज मैं यहां आपके सामने बैठ भी पाती या नहीं। मैं सिर्फ यही कहना चाहती हूं कि ऐसे पुलिस वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। अगर मेरी जगह कोई और लड़की होती जिसके पिता डीएम नहीं होते तो शायद उसकी आवाज कभी सामने नहीं आती। मैं चाहती हूं कि आज सभी लड़कियों के लिए न्याय हो।”
मायरा की बातें सुनकर हॉल में बैठे पत्रकार और लोग भावुक हो गए। मीडिया कैमरे लगातार रिकॉर्ड कर रहे थे।
9. कड़ी कार्रवाई और समाज को संदेश
इसके बाद आईपीएस नंदिनी सिंह खड़ी हुई और बोली—
“मैं इस केस की जांच अधिकारी हूं। मैंने गवाहों से पूछताछ की, मेडिकल रिपोर्ट देखी और वीडियो सबूत चेक किए। सब कुछ साफ है कि इंस्पेक्टर और हवलदारों ने ड्यूटी तोड़ी है और कानून का उल्लंघन किया है। ऐसे लोग वर्दी पहनने लायक नहीं हैं। विभाग की ओर से मैं घोषणा करती हूं कि इंस्पेक्टर और उसके साथियों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया जाता है और उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही शुरू हो चुकी है। एफआईआर दर्ज कर दी गई है और आज ही इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा।”
इतना सुनते ही प्रेस हॉल तालियों से गूंज उठा। पत्रकारों ने पूछा—”क्या इन्हें सजा मिलेगी?”
डीएम ने कहा—”हां, बिल्कुल! अब यह मामला सिर्फ विभागीय कार्यवाही तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अदालत में चलेगा। जो भी अपराध साबित होगा, उसके हिसाब से सजा दी जाएगी और मैं गवाह बनकर अदालत में भी खड़ा रहूंगा।”
नंदिनी सिंह ने भी जोड़ा—”यह संदेश पूरे पुलिस विभाग और समाज के लिए है। कोई कितना भी बड़ा क्यों ना हो, कानून से ऊपर नहीं है और बेटियों की सुरक्षा से कभी समझौता नहीं होगा।”
प्रेस मीटिंग खत्म होते ही पुलिस टीम इंस्पेक्टर और हवलदारों को हथकड़ी पहनाकर हॉल से बाहर ले गई। मीडिया कैमरे उनकी तस्वीरें खींचते रहे। पूरे जिले में यह खबर फैल गई।
10. निष्कर्ष: हिम्मत, न्याय और समाज
मायरा की हिम्मत, डीएम का न्याय और आईपीएस अफसर की ईमानदारी ने साबित कर दिया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। बेटियों की सुरक्षा के लिए समाज को जागरूक होना जरूरी है। अगर मायरा ने डरकर हार मान ली होती, तो शायद आज कई और लड़कियां भी डर जातीं। लेकिन उसकी आवाज ने पूरे सिस्टम को हिला दिया।