लेकिन बेटे ने उसे बस एक पैकेट नूडल्स दिया, मुस्कुराया और धीरे से विदा कर दिया।
पर जब वह घर पहुँची और पैकेट खोला, तो जो देखा — उसने उसके दिल को हिला दिया…
दोपहर का वक्त था। आसमान से हल्की बूंदाबांदी हो रही थी।
सावित्री देवी, झुकी हुई पीठ और काँपते पैरों के साथ, अपनी पुरानी लकड़ी की लाठी पर सहारा लेकर गोरखपुर जिले की एक कच्ची सड़क पर धीरे-धीरे चल रही थीं।
उनके कंधे पर एक पुराना, फटा हुआ कपड़े का थैला टंगा था — जिसमें बस कुछ मेडिकल रिपोर्ट और कुछ सिक्के थे, जो शायद एक रोटी खरीदने भर के ही थे।
उनकी उम्र सत्तर थी। दिल की बीमारी ने शरीर को कमजोर बना दिया था, पर उस दिन उन्होंने हिम्मत जुटाई — अपने बेटे अर्जुन से मिलने के लिए, जिसे उन्होंने अपने खून-पसीने से बड़ा किया था।
डॉक्टर ने कहा था कि ऑपरेशन ज़रूरी है, और खर्च लाखों में आएगा। उनके पास इतना पैसा कहाँ था?
इसलिए उन्होंने सोचा — “बेटे से मदद माँग लूँ। आखिर वही तो अब मेरा सहारा है।”
अब अर्जुन लखनऊ शहर में बिल्डिंग मटेरियल की बड़ी दुकान चलाता था, शानदार बंगला और कार के साथ। सावित्री को विश्वास था — “मेरा बेटा चाहे कितना भी व्यस्त हो, अपनी माँ को कभी तकलीफ़ में नहीं देखेगा।”
जब वह उसके बंगले के सामने पहुँचीं, तो बड़े लोहे के गेट पर जाकर रुकीं और डोरबेल दबाई — “टिंग-टिंग” की आवाज़ गूँजी।
थोड़ी देर बाद, अर्जुन की पत्नी रीमा दरवाज़े पर आई। उसने सावित्री देवी को ऊपर से नीचे तक देखा और ठंडी आवाज़ में पूछा:
— “अम्मा जी, कुछ काम था?”
सावित्री ने धीमी मुस्कान के साथ कहा:
— “बेटा, अर्जुन से मिलने आई हूँ… थोड़ी ज़रूरी बात करनी थी।”
रीमा ने बिना कुछ बोले अंदर जाकर अर्जुन को बुलाया।
थोड़ी देर बाद अर्जुन बाहर आया — महँगी शर्ट में, हाथ में मोबाइल लिए हुए।
— “माँ, आप यहाँ कैसे? मैं अभी मीटिंग में हूँ।”
सावित्री ने काँपते हाथों से जेब से मेडिकल पेपर निकाले:
— “बेटा, डॉक्टर ने कहा है कि ऑपरेशन करवाना होगा। थोड़ा-सा पैसा उधार दे दो। जब तुम्हारा भाई खेत से फसल बेचेगा, लौटा दूँगी।”
अर्जुन ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा:
— “माँ, बिज़नेस में भी बहुत तंगी चल रही है। फिलहाल कुछ नहीं कर सकता। आप घर जाइए, बाद में देखता हूँ।”
सावित्री की आँखें नम हो गईं:
— “बस थोड़ा-सा दे दो बेटा, इलाज के लिए… भगवान तुम्हारा भला करेगा।”
अर्जुन ने अपनी पत्नी की तरफ देखा और बोला:
— “ठीक है माँ, ये लो नूडल्स का पैकेट। इसे खा लेना, ताक़त मिलेगी। कुछ दिनों में पैसे भेज दूँगा।”
उसने कार की डिक्की से इंस्टेंट नूडल्स का पैकेट निकाला, माँ के हाथ में थमाया और धीरे से गेट की ओर बढ़ाया।
— “माँ, जाइए अब, बारिश तेज़ हो जाएगी।”
सावित्री देवी ने सिर झुकाया, पैकेट को सीने से लगाया और चुपचाप चल दीं।
गेट बंद हो गया। वह अकेली बूढ़ी माँ बारिश में भीगती रही, पर दिल में अपने बेटे के लिए कोई शिकायत नहीं थी।
रास्ते में उसने सोचा —
“शायद बेटा सच में मुश्किल में होगा। उसने जो दिया, वही सही। आखिर दिया तो कुछ है।”
घर पहुँचकर उसने नूडल्स का पैकेट टेबल पर रखा। भूख लगी थी, सोचा — “बना लूँ।”
लेकिन जैसे ही उसने पैकेट खोला, भीतर एक लिफ़ाफ़ा भी था।
काँपते हाथों से उसने लिफ़ाफ़ा खोला। अंदर ₹50,000 रुपये नकद और एक चिट्ठी थी:
“माँ, माफ़ करना। मैंने झूठ कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं। मैं नहीं चाहता था कि रीमा जाने।
वो समझेगी कि मैं अपने घरवालों को ज़्यादा मानता हूँ।
ये पैसे तुरंत इलाज के लिए इस्तेमाल करना।
माँ, मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ — बस कह नहीं पाया।”
सावित्री की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने लिफ़ाफ़ा सीने से लगाया और बुदबुदाई —
“मेरा बेटा अभी भी वही है… बस हालात ने उसे बदल दिया।”
अगले दिन वह अस्पताल गईं। ऑपरेशन सफल हुआ।
जब आँखें खुलीं, तो सामने अर्जुन बैठा था — आँखें लाल, चेहरे पर पछतावा।
— “माँ, माफ़ कर दो। उस दिन डर गया था कि रीमा कुछ कहेगी। बहुत अफ़सोस है…”
सावित्री ने उसका हाथ थामते हुए कहा:
— “बेटा, माँ कभी नाराज़ नहीं होती। याद रखना, पैसा वापस आ सकता है, लेकिन माँ का प्यार अगर खो गया — तो कभी नहीं लौटेगा।”
अर्जुन रो पड़ा, सिर माँ के हाथों पर रख दिया।
बाहर लखनऊ की धूप खिड़की से भीतर आ रही थी — गर्म, सुनहरी और सुकूनभरी।
उस दिन के बाद अर्जुन बदल गया।
हर रविवार वह गाँव आता, माँ के लिए दवाएँ लाता, पुराना घर ठीक करवाता।
रीमा शुरू में खीझती थी, पर धीरे-धीरे उसने भी समझा।
एक दिन उसने अर्जुन से कहा:
— “मुझे माफ़ करना, मैं भी स्वार्थी थी। अब समझती हूँ कि जैसे तुम माँ से प्यार करते हो, वैसा ही मैं चाहूँगी हमारे बच्चे भी मुझसे करें।”
अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा:
— “धन्यवाद, रीमा। अब कभी माँ को अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
धीरे-धीरे पूरा गाँव बस्तीपुर उनकी कहानी जान गया।
लोग कहते —
“वो नूडल्स वाला पैकेट सच में माँ-बेटे के प्यार का प्रतीक बन गया।”
सालों बाद, सावित्री के बाल पूरी तरह सफ़ेद हो गए।
एक दिन उन्होंने अर्जुन, रीमा और पोते-पोतियों को बुलाया, और एक छोटा लकड़ी का डिब्बा दिया।
अंदर एक रूमाल और एक नोट था:
“बेटा, मेरे पास बहुत धन नहीं है, लेकिन मैंने जो सीखा वो ये है —
पैसा सबकुछ नहीं होता।
सबसे कीमती है — प्रेम, सम्मान और करुणा।
यही मेरा आशीर्वाद है।”
उस शाम सूरज धान के खेतों पर ढल रहा था। सावित्री ने मुस्कुराते हुए आँखें मूँद लीं — चेहरे पर शांति थी।
उनके अंतिम संस्कार में पूरा गाँव आया।
लोग कहते रहे —
“सावित्री देवी ने हमें सिखाया कि माँ-बेटे का प्यार कभी देर से भी जगे, तो भी वो सबसे पवित्र होता है।”
आज भी गाँव के बच्चे उनकी कहानी सुनते हुए कहते हैं:
“जब हम बड़े होंगे, कभी अपनी माँ को रुलाएँगे नहीं।”
और लोग याद करते हैं —
🌾 “वो नूडल्स का पैकेट — वही तो था, जिसमें माँ और बेटे का सारा प्यार समाया था।” ❤️