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      My husband insulted me in front of his mother and sister — and they clapped. I walked away quietly. Five minutes later, one phone call changed everything, and the living room fell silent.

      27/08/2025

      My son uninvited me from the $21,000 Hawaiian vacation I paid for. He texted, “My wife prefers family only. You’ve already done your part by paying.” So I froze every account. They arrived with nothing. But the most sh0cking part wasn’t their panic. It was what I did with the $21,000 refund instead. When he saw my social media post from the same resort, he completely lost it…

      27/08/2025

      They laughed and whispered when I walked into my ex-husband’s funeral. His new wife sneered. My own daughters ignored me. But when the lawyer read the will and said, “To Leona Markham, my only true partner…” the entire church went de:ad silent.

      26/08/2025

      At my sister’s wedding, I noticed a small note under my napkin. It said: “if your husband steps out alone, don’t follow—just watch.” I thought it was a prank, but when I peeked outside, I nearly collapsed.

      25/08/2025

      At my granddaughter’s wedding, my name card described me as “the person covering the costs.” Everyone laughed—until I stood up and revealed a secret line from my late husband’s will. She didn’t know a thing about it.

      25/08/2025
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    Home » कनाडा में फाइट देखने गयी थी पंजाबी लड़की, फाइटर ने थप्पड़ मार दिया, फिर उसने जो किया देख कर होश उड़ गए
    India Story

    कनाडा में फाइट देखने गयी थी पंजाबी लड़की, फाइटर ने थप्पड़ मार दिया, फिर उसने जो किया देख कर होश उड़ गए

    rinnaBy rinna16/10/202514 Mins Read
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    स्वाभिमान की लड़ाई

    क्या एक आम गृहणी के आँचल में ज्वाला छिपी हो सकती है? क्या होता है जब किसी के स्वाभिमान को, उसकी जड़ों को, उसकी पहचान को सरेआम ललकारा जाता है? और क्या ताक़त के नशे में चूर एक इंसान यह समझ पाता है कि हर साधारण दिखने वाला चेहरा साधारण नहीं होता?

    यह कहानी है बलविंदर कौर की। पंजाब के खेतों की मिट्टी में पली-बढ़ी एक ऐसी साधारण सी महिला की, जो अपनी आँखों में घर-परिवार के सपने लिए सात समंदर पार कनाडा आ बसी थी। वो तो बस अपने पति के साथ एक लाइव फ़ाइट का रोमांच देखने गई थी। पर उसे क्या पता था कि रिंग की चैंपियन, एक घमंडी और ताक़तवर फ़ाइटर, जीत के नशे में उसे ही अपना अगला शिकार बना लेगी।

    उसने बलविंदर को एक ज़ोरदार थप्पड़ मारा, यह सोचकर कि यह कमज़ोर सी औरत क्या कर लेगी? पर उसने उस थप्पड़ से बलविंदर के गाल पर नहीं, बल्कि उसके अंदर सोई हुई उस शेरनी पर हाथ डाल दिया था जिसे दुनिया भूल चुकी थी। और फिर जो हुआ, उसने न सिर्फ़ उस फ़ाइटर का ग़ुरूर, बल्कि वहाँ मौजूद हर एक शख़्स के होश उड़ा दिए। उसे क्या पता था कि जिस औरत को वह एक कमज़ोर दर्शक समझ रही थी, वह उसके ग़ुरूर को उसी के अखाड़े में मिट्टी में मिलाने वाली थी। चलिए, स्वाभिमान की इस असाधारण लड़ाई की कहानी को शुरू से जानते हैं।

    कनाडा का ब्रैम्पटन शहर, जिसे कई लोग ‘मिनी पंजाब’ भी कहते हैं। यहाँ की हवा में अक्सर गुरुद्वारे से आती गुरबाणी की मीठी धुन, तंदूर से निकलती रोटियों की सोंधी ख़ुशबू और लोगों की बातों में पंजाबी की मिठास घुली रहती है। इसी शहर की एक शांत सी गली में एक छोटे से घर में बलविंदर कौर की दुनिया बसती थी। 40 साल की बलविंदर, जिसके चेहरे पर एक घरेलू शांति और आँखों में एक अजीब सी गहराई थी। उसकी ज़िंदगी सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने, पति हरमन के लिए परांठे बनाने और फिर दिन भर घर के कामों में उलझे रहने की एक सीधी-सादी लय में चलती थी। हरमन यहाँ एक छोटी सी ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाता था और बलविंदर उसकी सबसे बड़ी ताक़त थी।

    उसके आस-पड़ोस के लोग उसे एक शांत, मिलनसार और मेहनती औरत के रूप में जानते थे, जिसके हाथ के बने खाने की तारीफ़ें दूर-दूर तक होती थीं। पर कोई नहीं जानता था कि इस शांत सी दिखने वाली गृहिणी के अतीत में एक ऐसा तूफ़ान छिपा है जिसकी गूँज आज भी उसके दिल के किसी कोने में ज़िंदा थी।

    यह कहानी शुरू होती है आज से 25 साल पहले, पंजाब के माझा क्षेत्र के एक छोटे से गाँव से। बलविंदर इस गाँव के सबसे सम्मानित पहलवान, सरदार जरनैल सिंह, की इकलौती बेटी थी। जरनैल सिंह का गाँव में अपना अखाड़ा था, जहाँ दूर-दूर से नौजवान कुश्ती के दाँव-पेंच सीखने आते थे। जरनैल सिंह की एक ही हसरत थी कि उनका एक बेटा हो जो उनकी पहलवानी की विरासत को आगे बढ़ाए। पर क़िस्मत ने उन्हें एक बेटी दी। गाँव वालों ने, रिश्तेदारों ने बहुत ताने दिए: “लो, पहलवान जी के घर तो पहलवान की जगह परी आ गई।”

    जरनैल सिंह शुरू में निराश हुए। पर जैसे-जैसे बलविंदर बड़ी होने लगी, उन्होंने अपनी बेटी में एक ऐसी आग, एक ऐसी हिम्मत देखी, जो उन्होंने अपने अखाड़े के बड़े-बड़े पहलवानों में भी नहीं देखी थी। उन्होंने समाज की परवाह किए बिना एक क्रांतिकारी फ़ैसला लिया: वह अपनी बेटी को एक पहलवान बनाएंगे।

    हर रोज़, जब दुनिया सो रही होती, सूरज उगने से पहले, जरनैल सिंह अपनी नन्ही सी बलविंदर को अखाड़े की मिट्टी में ले जाते। उन्होंने उसे कुश्ती का हर दाँव सिखाया: धोबी पछाड़, धाक, बाहरली तांग। उन्होंने उसे सिर्फ़ लड़ना नहीं सिखाया। उन्होंने उसे मिट्टी की इज़्ज़त करना सिखाया, अपने विरोधी का सम्मान करना सिखाया और अपनी ताक़त का सही इस्तेमाल करना सिखाया। वह कहते थे, “पुत्तर, असली ताक़त जिस्म में नहीं, ज़मीर में होती है। और ज़मीर कहता है कि ताक़त का इस्तेमाल कभी ग़ुरूर के लिए नहीं, बल्कि स्वाभिमान की रक्षा के लिए करना।”

    बलविंदर अपने पिता की उम्मीदों पर खरी उतरी। वो लड़कों से बेहतर दाँव लगाती थी। उसकी पकड़ में लोहे जैसी मज़बूती और उसके इरादों में फ़ौलाद जैसी दृढ़ता थी। पर यह सब दुनिया की नज़रों से छिपा हुआ था। जरनैल सिंह जानते थे कि उनका समाज एक लड़की को अखाड़े में स्वीकार नहीं करेगा।

    पर एक दिन, जब बलविंदर 15 साल की थी, गाँव में कुश्ती का एक बड़ा दंगल हुआ। पड़ोसी गाँव का एक पहलवान, जो अपने घमंड के लिए मशहूर था, खुलेआम चुनौती दे रहा था कि कोई उसे हरा नहीं सकता। जरनैल सिंह के अखाड़े के सारे पहलवान उससे हार गए। जरनैल सिंह का सिर शर्म से झुका जा रहा था। तभी बलविंदर, जो दुपट्टे से अपना चेहरा ढके हुई थी, भीड़ से निकली और अपने पिता के पैरों पर गिर पड़ी। “बाबूजी, एक मौक़ा दीजिए। आज आपके सम्मान का सवाल है।”

    उस दिन उस दंगल में जो हुआ, वह गाँव के इतिहास में एक लेजेंड बन गया। उस नक़ाबपोश पहलवान ने, जिसे सब एक लड़का समझ रहे थे, उस घमंडी पहलवान को कुछ ही मिनटों में धूल चटा दी। जब उसने अपना नक़ाब हटाया और लोगों ने बलविंदर का चेहरा देखा, तो वहाँ सन्नाटा छा गया। कुछ लोगों ने तालियाँ बजाईं, पर ज़्यादातर लोगों की आँखों में हैरानी और अस्वीकृति थी।

    उस दिन के बाद, जरनैल सिंह को समाज से बहुत कुछ सुनना पड़ा, पर उन्हें अपनी बेटी पर गर्व था। कुछ साल बाद, जब वह बीमार पड़े और बिस्तर पर आ गए, तो उन्होंने अपनी बेटी का हाथ पकड़ कर एक वचन लिया। “पुत्तर, यह दुनिया अभी तुम्हारे जैसी शेरनियों के लिए तैयार नहीं है। मुझसे वादा कर कि तू एक आम लड़की की तरह ज़िंदगी जिएगी, शादी करेगी, घर बसाएगी और अपनी इस कला का इस्तेमाल कभी भी बेवजह गुस्से में या शोहरत के लिए नहीं करेगी। हाँ, अगर कभी तेरे या किसी मज़लूम के स्वाभिमान पर आँच आए, तो पीछे मत हटना।”

    बलविंदर ने रोते हुए अपने पिता को वचन दिया। पिता के जाने के बाद, उसने अखाड़े की मिट्टी को माथे से लगाया और उसे हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। कुछ साल बाद, उसकी शादी कनाडा में रहने वाले एक अच्छे, नेक-दिल इंसान, हरमन, से हो गई। हरमन को बस इतना पता था कि उसकी पत्नी के पिता पहलवान थे और वह एक मज़बूत दिल की औरत है। पर वह उस ज्वाला से अनजान था जिसे बलविंदर ने अपने दिल के अंदर कहीं गहरे दफ़न कर दिया था।

    कनाडा आकर बलविंदर पूरी तरह एक गृहणी बन गई। उसने अपने दो बच्चों की परवरिश में ख़ुद को डुबो दिया। वह ख़ुश थी। पर कभी-कभी अकेले में उसे अखाड़े की वह सोंधी मिट्टी, पिता की वह बुलंद आवाज़ और कुश्ती की वह ललकार बहुत याद आती। पर वह अपने वचन से बंधी थी। उसने अपनी पहलवानी को एक राज़ बनाकर अपने अतीत के संदूक में बंद कर दिया था।

    और फिर, 15 साल बाद, वो रात आई जिसने उस बंद संदूक के ताले को एक ही झटके में तोड़ दिया।

    उस हफ़्ते हरमन का जन्मदिन था। हरमन और उसके दोस्त कनाडा में होने वाली लोकल फ़ीमेल फ़ाइट लीग के बहुत बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने ज़िद करके बलविंदर को भी अपने साथ चलने के लिए मना लिया। “चल बलविंदर, तुझे भी दिखाते हैं कि यहाँ की कुड़ियाँ कैसे लड़ती हैं। तुझे बहुत मज़ा आएगा।”

    बलविंदर शुरू में हिचकिचाई। लड़ाई-झगड़ा, यह सब उसे अब पसंद नहीं था। पर पति की ख़ुशी के लिए वह तैयार हो गई।

    शनिवार की रात, ब्रैम्पटन का सबसे बड़ा इनडोर स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। तेज़ संगीत, लेज़र लाइट्स का धुआँ और हज़ारों लोगों का शोर, माहौल में एक अजीब सा नशा था। बलविंदर इस दुनिया में ख़ुद को थोड़ा अलग-थलग महसूस कर रही थी। उसने एक साधारण सा पंजाबी सूट पहना था और सिर पर दुपट्टा ओढ़ रखा था। वह अपने पति और उसके दोस्तों के साथ रिंग के बिल्कुल पास वाली सीटों पर बैठी थी।

    फ़ाइट शुरू हुई। रिंग में दो लड़कियाँ एक-दूसरे पर बेरहमी से वार कर रही थीं। बलविंदर ने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा था। यह कुश्ती नहीं थी। कुश्ती में सम्मान होता है, नियम होते हैं। यहाँ तो बस जीतने की एक जंगली भूख थी।

    आख़िरी फ़ाइट थी उस लीग की चैंपियन, वेरोनिका ‘द विंडिकेटर’ की। वेरोनिका एक लंबी-चौड़ी, बेहद ताक़तवर फ़ाइटर थी, जिसके नाम से ही उसकी विरोधी काँपती थीं। वह सिर्फ़ अपनी ताक़त के लिए नहीं, बल्कि अपने बुरे व्यवहार और घमंड के लिए भी जानी जाती थी।

    फ़ाइट शुरू हुई। वेरोनिका अपनी विरोधी पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी। उसने कुछ ही मिनटों में उसे बुरी तरह से हराकर नॉक-आउट कर दिया। पूरा स्टेडियम “वेरोनिका! वेरोनिका!” के नारों से गूँज उठा।

    बलविंदर भी यह सब देख रही थी। वह वेरोनिका की ताक़त से प्रभावित थी, पर उसके लड़ने के तरीक़े में जो क्रूरता और असम्मान था, उसे देखकर उसका मन खट्टा हो गया। “यह ताक़त नहीं, यह तो वहशीपन है,” उसने मन में सोचा।

    जीतने के बाद, वेरोनिका रिंग में घूम-घूम कर दर्शकों का अभिवादन स्वीकार कर रही थी। उसकी आँखों में जीत का नशा और ग़ुरूर साफ़ झलक रहा था। वह रिंग के किनारे आई जहाँ बलविंदर और उसका परिवार बैठा था। हरमन और उसके दोस्त भी बाक़ी लोगों की तरह शोर मचा रहे थे और तालियाँ बजा रहे थे। बलविंदर भी माहौल में बहकर हल्की सी मुस्कान के साथ ताली बजा रही थी।

    तभी वेरोनिका की नज़र बलविंदर पर पड़ी। शायद उसे बलविंदर का साधारण पहनावा उस चमक-दमक वाली दुनिया में एक धब्बे की तरह लगा, या शायद बलविंदर की शांत आँखों में उसे अपने लिए कोई चुनौती दिखी। या शायद वह बस अपनी ताक़त के नशे में चूर थी। वह बलविंदर के बिल्कुल सामने आकर खड़ी हो गई।

    “What are you looking at, aunty? Go make some rotis.” (क्या देख रही हो, आंटी? जाओ जाकर रोटियाँ बनाओ।) उसने ऊँची आवाज़ में अपमानजनक लहजे में कहा।

    बलविंदर, हरमन और उसके दोस्त, सब सन्न रह गए। बलविंदर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बस शांत खड़ी रही। शायद उसकी यह ख़ामोशी वेरोनिका को और चुभ गई। उसे लगा कि उसकी बेइज़्ज़ती का कोई असर नहीं हुआ। वह आगे बढ़ी और जो किया, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

    उसने अपना हाथ उठाया और हज़ारों लोगों के सामने, कैमरों के सामने, बलविंदर के गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

    थप्पड़ की आवाज़ तेज़ संगीत के शोर में दब गई, पर उसने बलविंदर के अंदर सोए हुए तूफ़ान को जगा दिया। यह सिर्फ़ एक थप्पड़ नहीं था। यह उसके स्वाभिमान पर हमला था। यह उसके पिता की दी हुई सीख पर हमला था। यह उसकी पहचान पर हमला था।

    “पुत्तर, अगर कभी तेरे या किसी मज़लूम के स्वाभिमान पर आँच आए, तो पीछे मत हटना।” पिता के यह शब्द उसके कानों में बिजली की तरह कौंधे।

    एक पल के लिए सब कुछ जैसे थम गया। बलविंदर की आँखों की शांति एकाएक ग़ायब हो गई। उसकी जगह एक ऐसी ज्वाला धधक उठी जिसे देखकर हरमन भी डर गया। उसने अपनी पत्नी का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था।

    “बलविंदर, जाने दे, छोड़ दे! यह प्रोफ़ेशनल फ़ाइटर है! यह तुझे मार डालेगी!” हरमन ने उसे पकड़ने की कोशिश की।

    पर बलविंदर ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ाया। उसकी पकड़ में इतनी ताक़त थी कि हरमन पीछे हट गया। अब बलविंदर की नज़रें सिर्फ़ और सिर्फ़ वेरोनिका पर थीं, जो अभी भी हँस रही थी, अपनी इस हरकत पर गर्व महसूस कर रही थी।

    बलविंदर ने कुछ कहा नहीं। उसने बस अपना दुपट्टा अपनी कमर में कसा। यह वही हरकत थी जो उसके पिता दंगल में उतरने से पहले करते थे। और फिर, इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उसने दौड़कर रिंग की रस्सियों पर हाथ रखा और एक ऐसी फुर्ती और सधे हुए अंदाज़ में छलाँग लगाई कि वहाँ मौजूद सारे सिक्योरिटी गार्ड और रेफ़री बस देखते रह गए।

    अब बलविंदर रिंग के अंदर थी, वेरोनिका के सामने। स्टेडियम में अब नारों का शोर नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी ख़ामोशी थी। वेरोनिका अब भी हँस रही थी। “ओह, तो आंटी लड़ना चाहती हैं? लगता है आज किसी को अस्पताल जाने का शौक़ है।”

    रेफ़री और सिक्योरिटी गार्ड रिंग में भागे। “मैम, आप नीचे उतर जाइए! आप ऐसा नहीं कर सकतीं!” पर तभी फ़ाइट का प्रमोटर, जो यह सब देख रहा था, उसकी आँखों में डॉलर के चिह्न चमक उठे। उसने सोचा, यह तो अप्रत्याशित ड्रामा है, इससे तो शो और हिट हो जाएगा। उसने माइक पर घोषणा की, “लेडीज़ एंड जेंटलमैन, लगता है हमारी चैंपियन को एक अनचाही चुनौती मिल गई है! क्या कहते हैं आप लोग? क्या एक राउंड हो जाए?”

    भीड़, जो अब तक कंफ़्यूज़ थी, अब उत्साहित हो उठी। पूरा स्टेडियम “फ़ाइट! फ़ाइट! फ़ाइट!” के नारों से गूँजने लगा।

    वेरोनिका ने अपने ग्लव्स पहने। “ठीक है। मैं इस मोटी औरत को एक मिनट में धूल चटा दूँगी।”

    रेफ़री ने बेमन से दोनों को रिंग के बीच में बुलाया। एक तरफ़ थी प्रोफ़ेशनल MMA फ़ाइटर, जिसके शरीर पर हर मांसपेशी फ़ौलाद की तरह थी। और दूसरी तरफ़ थी बलविंदर कौर, एक साधारण पंजाबी सूट में, जिसके चेहरे पर अब न कोई डर था, न कोई गुस्सा, बस एक अजीब सी शांति थी।

    फ़ाइट की घंटी बजी। वेरोनिका अपनी पूरी ताक़त से बलविंदर पर झपटी। उसने तेज़ किक्स और पंचेस की बौछार कर दी। पर वह हैरान रह गई। बलविंदर किसी हवा के झोंके की तरह उसके हर वार से बच रही थी। उसकी फुर्ती उसकी शारीरिक बनावट से बिल्कुल मेल नहीं खा रही थी।

    वेरोनिका का गुस्सा अब बढ़ने लगा। उसने एक तेज़ हाई किक मारी, जो अगर लग जाती तो बलविंदर का काम तमाम कर देती। पर बलविंदर नीचे झुकी, किक से बची, और एक ही झपट्टे में वेरोनिका की टाँग पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया। वेरोनिका का संतुलन बिगड़ चुका था। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, बलविंदर ने उसे अपने कंधे पर उठाया, हवा में घुमाया और अखाड़े की मिट्टी की क़सम खाते हुए उसे उठाकर रिंग के फ़र्श पर पटक दिया।

    यह कुश्ती का वही प्रसिद्ध दाँव था, ‘धोबी पछाड़’।

    वेरोनिका दर्द से कराह उठी। पूरा स्टेडियम सन्न रह गया। वेरोनिका जल्दी से उठी, उसकी आँखों में अब हैरानी और गुस्सा था। वो फिर से बलविंदर की ओर दौड़ी। पर बलविंदर अब पूरी तरह से अपने रंग में आ चुकी थी। उसने वेरोनिका को पास आने दिया और फिर अपनी अद्भुत पकड़ का इस्तेमाल करते हुए उसे एक ऐसे लॉक में जकड़ लिया जिससे निकलना नामुमकिन था। यह कुश्ती की एक पारंपरिक पकड़ थी जिसे ‘धाक’ कहते हैं।

    वेरोनिका की साँसें उखड़ने लगीं। उसने अपनी पूरी ताक़त लगा दी, पर वह उस पकड़ से ख़ुद को छुड़ा नहीं पाई। कुछ ही सेकंड में, उसने हार मानते हुए ज़मीन पर हाथ पटकना शुरू कर दिया। उसने टैप-आउट कर दिया।

    घंटी बजी, फ़ाइट ख़त्म हो चुकी थी।

    एक पल के लिए पूरे स्टेडियम में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। फिर वो सन्नाटा तालियों, सीटियों और एक अविश्वसनीय शोर के तूफ़ान में बदल गया। एक साधारण सी दिखने वाली ‘आंटी’ ने उनकी अजेय चैंपियन को हरा दिया था।

    रेफ़री ने काँपते हुए बलविंदर का हाथ उठाकर उसे विजेता घोषित किया। बलविंदर ने अपना हाथ नीचे कर लिया। उसने वेरोनिका की ओर देखा जो अब भी ज़मीन पर पड़ी दर्द और शर्मिंदगी से कराह रही थी। बलविंदर की आँखों में जीत का ग़ुरूर नहीं, बल्कि एक शांत सा संदेश था: यह होता है सम्मान का मतलब।

    वह चुपचाप रिंग से उतरी। प्रमोटर उसके पीछे भागा। “मैम, रुकिए! मैं आपको एक कॉन्ट्रैक्ट देना चाहता हूँ! आप अगली चैंपियन बन सकती हैं!”

    बलविंदर रुकी। उसने प्रमोटर की ओर देखा और बड़ी शांति से पंजाबी में कहा, “मैं कोई फ़ाइटर नहीं हूँ। मैं एक माँ हूँ, एक पत्नी हूँ। मैंने तो बस अपने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ी थी, जो अब ख़त्म हो गई है।” उसने भीड़ में अपने पति हरमन को ढूँढ़ा, जो अब भी सदमे और गर्व के मिले-जुले भाव के साथ खड़ा था। उसने उसका हाथ पकड़ा और दोनों चुपचाप उस शोर भरे स्टेडियम से बाहर निकल गए, पीछे एक ऐसी किंवदंती छोड़कर जिसे ब्रैम्पटन शहर शायद कभी नहीं भुला पाएगा।

    अगले दिन, यह ख़बर पूरे कनाडा के भारतीय समुदाय में आग की तरह फैल गई। “पराठे बनाने वाली ने चैंपियन को हराया।” “पंजाबी शेरनी ने सिखाया सबक़।” बलविंदर कौर रातों-रात एक गुमनाम गृहिणी से एक सेलिब्रिटी बन गई थी। एक ऐसी हीरो जिसने यह साबित कर दिया था कि असली ताक़त जिम में नहीं, बल्कि ज़मीर में होती है।

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