क्या आपने कभी किसी को हँसते हुए अपना मज़ाक उड़ाते देखा है… और फिर उसी भीड़ के बीच खड़े होकर, वही लोग आपकी तारीफ करते नजर आएं? यह कहानी है आर्या मेहता की उस लड़की की जिसने अपने हाथों की मेहनत से वो कर दिखाया, जो दस डिग्रीधारी इंजीनियर भी नहीं कर सके। मुंबई की दोपहर थी।
मई की तपती गर्मी में सूरज मानो शहर की सड़कों को पिघलाने पर आमादा था। फिर भी इलेक्ट्रोविंग्स मोटर्स लिमिटेड, देश की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी के बाहर महंगी कारों की लंबी कतार थी। अंदर एयर-कंडीशनर की ठंडी हवा और बाहर तपती धूप दोनों के बीच वही फर्क था जो मेहनतकश लोगों और आरामतलबी में डूबे लोगों के बीच होता है।
इलेक्ट्रोविंग्स का कॉन्फ्रेंस हॉल आज कुछ ज्यादा ही तनावपूर्ण था। वहां एक चमचमाती सिल्वर इलेक्ट्रिक कार के चारों ओर दस इंजीनियर खड़े थे। वो कंपनी का नया मॉडल था E-One Alpha, जो अगले हफ्ते दुबई में होने वाले इंटरनेशनल ऑटो एक्सपो में लॉन्च होना था।
लेकिन कार चालू नहीं हो रही थी।
सर, कोड स्कैन कर लिया है… सॉफ्टवेयर अपडेट भी किया, पर सिस्टम रिस्पॉन्ड नहीं कर रहा, एक इंजीनियर ने कहा। दूसरे ने माथा पकड़ा, सेंसर फेल दिखा रहा है, लेकिन डायग्नोस्टिक्स रिपोर्ट कुछ और बता रही है। कंपनी के सीईओ विक्रम चौधरी गंभीर मुद्रा में खड़े थे।
साठ लाख का कॉन्ट्रैक्ट दांव पर था।
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, अगर ये गाड़ी दो दिन में ठीक नहीं हुई, तो हम एक्सपो से बाहर होंगे। और तुम सबकी नौकरियां खतरे में होंगी।
कमरे में सन्नाटा पसर गया।
सबकी आंखों में घबराहट थी।
तभी दरवाज़े पर एक धीमी, लेकिन दृढ़ आवाज़ गूंजी सर, क्या मैं देख सकती हूँ? सभी की नज़रें एक साथ घूमीं।
वहां दरवाज़े पर एक साधारण सी लड़की खड़ी थी।
उम्र मुश्किल से तेईस चौबीस साल।
नीली सलवार-कमीज़ में, बाल रबर बैंड से बंधे हुए, और हाथों में पुरानी टूलकिट। उसकी उंगलियों पर ग्रीस के निशान थे, पर चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक। विक्रम ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, तुम कौन हो?
लड़की ने विनम्र स्वर में कहा, सर, मैं आर्या हूँ।
नीचे सर्विस गैराज में काम करती हूँ।
सुना कि कार बंद पड़ी है… सोचा, देख लूँ।
शायद कुछ मदद कर सकूं।
कमरे में ठहाके गूंज उठे।
एक इंजीनियर बोला, अरे वाह, अब गैराज की लड़की हमारी करोड़ों की कार ठीक करेगी! दूसरा बोला, अगर ये ठीक कर दे, तो मैं अपनी सैलरी इसे दे दूँगा। तीसरा हंसते हुए बोला, डायरेक्टर बना दो इसको!
सभी हँस रहे थे, सिवाय आर्या के।
उसके चेहरे पर किसी हिचकिचाहट का नाम नहीं था।
वह शांत खड़ी रही।
विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा, ठीक है, अगर तुम में इतना आत्मविश्वास है तो मौका तुम्हारा है। लेकिन याद रखना, अगर कुछ गड़बड़ हुई तो यही आखिरी दिन होगा तुम्हारा यहाँ। आर्या ने सीधा उसकी आंखों में देखा।
उसकी आवाज़ में नर्मी थी, लेकिन लहजे में दृढ़ता सर, मैं कोशिश करूँगी… लेकिन हार मानने से पहले देख लेना कि शायद मुझसे भी कुछ सीखने को मिले। कमरे में खामोशी छा गई।
आर्या ने धीरे से कार के पास जाकर बोनट खोला।
उसके हाथ स्थिर थे।
इंजीनियर उसके हर मूवमेंट को ध्यान से देख रहे थे कुछ शक से, कुछ व्यंग्य से। उसने तारों को एक-एक कर चेक किया।
फ्यूज बॉक्स देखा, सर्किट बोर्ड की ओर झुकी, और फिर कार के डिजिटल पैनल पर उंगलियाँ चलाईं। कुछ ही पल में उसने कहा, सर, सर्किट का ग्राउंड इन्वर्टर गलत जगह जुड़ा है। इससे रिसेट कमांड फेल हो रहा है।
सभी चुप।
यह वही लाइन थी जिसे ढूँढने में इंजीनियरों की टीम दो दिन से असफल रही थी। आर्या ने सावधानी से एक माइक्रोचिप निकाली, कनेक्शन बदला, और कोडिंग पैनल पर एक छोटा रिसेट कोड टाइप किया। फिर उसने एक पल ठहरकर इग्निशन बटन दबाया।
कार की स्क्रीन हरी रोशनी से चमक उठी।
सिस्टम चालू हुआ।
इंजन की हल्की गूंज कमरे में फैली।
पूरा कमरा स्तब्ध था।
जो चेहरे अभी तक हँस रहे थे, अब सन्न पड़े थे।
किसी ने फुसफुसाया, इम्पॉसिबल… विक्रम धीरे-धीरे आगे बढ़ा। तुमने… ये कैसे किया?
आर्या ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, सर, मेरे पापा गैराज चलाते थे। उन्होंने मुझे सिखाया था कि मशीन को सिर्फ चलाओ मत, उसे महसूस करो। वो खुद बता देती है कि कहाँ दर्द है।
बस वही किया।
विक्रम कुछ देर तक उसे देखता रहा।
फिर बोला, तुम्हें अब बाहर नहीं जाना पड़ेगा।
आर्या ने सिर झुका लिया।
उसकी आंखों में नमी थी, पर चेहरे पर संतोष की आभा।
उसे नहीं पता था कि यह पल उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बन जाएगा। दो दिन बाद।
इलेक्ट्रोविंग्स मोटर्स के सामने मीडिया का सैलाब उमड़ा हुआ था। अंदर हॉल में कंपनी का भव्य लॉन्च चल रहा था।
वही कार, जो दो दिन पहले बंद पड़ी थी, अब मंच के बीच में रखी थी जगमगाती, जीवित। मंच पर विक्रम चौधरी माइक थामे खड़े थे।
दो दिन पहले हमारी कंपनी का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट रुक गया था। दस इंजीनियर दिन-रात मेहनत करते रहे, लेकिन असफल रहे। फिर एक लड़की आई जो हमारी कंपनी की कर्मचारी भी नहीं थी, बस नीचे गैराज में काम करने वाली एक मेकैनिक।
और उसने वो कर दिखाया जो हमारी पूरी टीम नहीं कर सकी। तालियों की गूंज पूरे हॉल में फैल गई।
कैमरों की फ्लैश लाइट्स आर्या पर टिक गईं।
विक्रम ने कहा, कभी-कभी डिग्री नहीं, जुनून इंसान की पहचान बनता है। और आज मैं गर्व से घोषणा करता हूँ कि आर्या मेहता को इलेक्ट्रोविंग्स मोटर्स का नया टेक्निकल डायरेक्टर नियुक्त किया जाता है। तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी।
आर्या की आंखों में आँसू थे।
वह मंच पर आई, माइक थामा, और बोली मैंने कभी सोचा नहीं था कि जिस गैराज में मैं बचपन में पापा के साथ तेल और ग्रीस से खेलती थी, वहीं एक दिन दुनिया मेरे काम की तारीफ करेगी। मेरे पास डिग्री नहीं थी, पर मेरे पास जज़्बा था।
मैंने मशीनों को किताब की तरह पढ़ा।
उन्हें महसूस किया।
वह कुछ पल रुकी, फिर बोली दो दिन पहले जब मैं इस कॉन्फ्रेंस हॉल में आई थी, लोग मुझ पर हँसे थे। मुझे उनके शब्दों से फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि मैंने सीखा है कि दूसरों की हँसी पर नहीं, अपनी मेहनत पर भरोसा करना चाहिए। अगर कोई तुम पर हंसे, तो जवाब में गुस्सा नहीं, काम देना चाहिए।
सामने खड़े इंजीनियर सिर झुकाए खड़े थे।
उनमें से एक ने आगे बढ़कर कहा, मैम, उस दिन हमने आपका मज़ाक उड़ाया था। आज समझ आया कि असली इंजीनियर वह नहीं जो कोड जानता है, बल्कि जो मशीन को समझता है। आपने हमें विनम्रता सिखाई।
आर्या ने मुस्कुराकर कहा, गलती हर किसी से होती है, लेकिन जो उसे मान ले, वही सच्चा इंसान होता है। विक्रम ने उसके गले में गोल्ड बैज पहनाया और कहा, आज से यह कार हमारी पहचान नहीं, आर्या की कहानी बनेगी। इसका नाम रहेगा ‘आर्या One’।
सारे कैमरे कार पर फोकस हो गए।
बोनट पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था ‘Aarya One – The Spirit of Determination’ मीडिया के एक रिपोर्टर ने पूछा, मैडम, जब सब आप पर हँस रहे थे, तब आपको डर नहीं लगा? आर्या ने हल्की हंसी के साथ कहा, डर तो हर इंसान को लगता है। फर्क बस इतना है कि कोई डर के रुक जाता है और कोई उसी डर से आगे बढ़ जाता है।
मैंने बस आगे बढ़ने का फैसला किया।
वह पल सिर्फ एक जीत का नहीं था वह उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा था जो सपने देखते हैं लेकिन परिस्थितियों से हार जाते हैं। शाम को जब सब जा चुके थे, विक्रम ने आर्या से कहा, तुम जानती हो, उस दिन मैंने तुम्हारे आत्मविश्वास को देखा था। मैंने सोचा, शायद यह लड़की सिर्फ किस्मत आजमा रही है।
लेकिन अब समझ आया कि तुमने हमें सिखाया है कभी किसी को उसके कपड़ों, उसकी भाषा या उसकी जगह से मत आँको। हुनर की कोई यूनिफॉर्म नहीं होती।
आर्या मुस्कुराई और बोली, सर, मुझे बस एक मौका चाहिए था… और आपने वो दे दिया। कांच के पार शहर की चमकती लाइटें दिख रही थीं।
वो लाइटें अब आर्या की ज़िंदगी में भी जगमगा उठी थीं।