बाहर अमावस की रात थी, और अंदर सुनहरी लाइट में सजा हुआ कमरा। नई दुल्हन नैना, लाल जोड़े में सजी, पलंग के किनारे बैठी थी। हाथ में चूड़ियों की खनक थी लेकिन दिल में खामोशी की गूंज।
यह उसकी शादी की पहली रात थी मगर उसके मन में न कोई उत्सुकता थी, न कोई अपनापन। दरवाज़ा धीरे से खुला।
अर्जुन, उसका पति, अंदर आया।
हाथ में दूध का गिलास था।
चेहरा शांत, कदम नपे-तुले, और निगाहें बिल्कुल संयमित। उसने धीमी आवाज़ में कहा, यह दूध आपके लिए है।
नैना ने बिना ऊपर देखे कहा, अगर एक औरत की मर्ज़ी के बिना कोई मर्द उसे छूता है, तो क्या वो अधिकार कहलाता है या अपराध? अर्जुन कुछ पल उसे देखता रहा, फिर बोला, आपके सवाल का जवाब मेरे व्यवहार में मिलेगा, शब्दों में नहीं। और वह गिलास मेज़ पर रखकर बाहर चला गया।
नैना हैरान रह गई।
उसे उम्मीद थी कि वह गुस्से में कुछ कहेगा, ज़बरदस्ती करेगा, या कम से कम तर्क देगा। पर उसने तो सबकुछ बिल्कुल उल्टा किया उसने उसे छुआ तक नहीं, बस उसकी मर्यादा की रक्षा की। दिन बीतते गए।
अर्जुन सुबह ऑफिस जाता, शाम को लौटकर माँ की दवा देता, घर के कामों में हाथ बँटाता, और रात में डायरी में कुछ लिखकर सो जाता। वह उससे कभी कुछ नहीं मांगता था, न शिकायत करता था।
नैना के लिए यह सब बहुत उलझन भरा था।
वह यह शादी अपनी मर्ज़ी से नहीं, बल्कि अपने पिता के दबाव में कर पाई थी। उसकी ज़िंदगी में पहले से कोई और था विवेक, जिससे वह कॉलेज के दिनों से प्यार करती थी। शादी के बाद भी नैना रोज़ स्कूटी लेकर बाहर जाती कहने को क्लास के नाम पर, पर असल में विवेक से मिलने।
विवेक अब वैसा नहीं था।
पहले जो उसके लिए गाने लिखता था, अब कहता था, थोड़े पैसे लाओ ना नैना… कुछ गहने ही सही… मुझे काम शुरू करना है। नैना ने कई बार सोचा कि वो मदद करे, पर जब उसने देखा कि विवेक सिर्फ़ उसके गहनों और पैसों की बात करता है, उसके जज़्बातों की नहीं उसे भीतर से झटका लगा। उसने पहली बार खुद से पूछा क्या यही प्यार था जिसके लिए मैंने अपने माता-पिता से लड़ाई की थी?
उधर अर्जुन वही था शांत, सलीकेदार, सम्मान से भरा।
एक दिन उसने देखा कि अर्जुन माँ की पुरानी साड़ी में धागा लगा रहा है। माँ ने कहा, बेटा, ये तू क्यों कर रहा है?
वो मुस्कुराया, माँ, अगर किसी चीज़ की मरम्मत हो सकती है, तो उसे फेंकना गलत है। नैना वही पास खड़ी थी।
शायद यह बात सिर्फ़ साड़ी के लिए नहीं थी शायद रिश्ते के लिए भी थी। लेकिन नैना अभी भी द्वंद में थी।
वो इस शादी से निकलना चाहती थी।
उसने मन ही मन सोचा कि अगली सुबह वो चली जाएगी।
रात को वह अलमारी के पास पहुँची अपने दस्तावेज़ और गहने निकालने के लिए। पर जैसे ही अलमारी खोली, वहाँ उसने कुछ ऐसा देखा जो उसकी सांसें रोक गया। एक छोटा-सा नीला फोल्डर रखा था।
अंदर थे वो सारे रुपये जो शादी में मिले थे, untouched. सारे गहनों की रसीदें उसके नाम पर। और सबसे ऊपर रखी थी एक डायरी।
नैना ने कांपते हाथों से डायरी खोली।
पहले पन्ने पर लिखा था नैना, मैं जानता हूँ तुम मुझसे प्यार नहीं करती। तुम्हारे पिताजी ने कभी मेरी माँ की जान बचाई थी, इसलिए जब उन्होंने यह रिश्ता माँगा, मैंने इंकार नहीं किया। मुझे तुम्हारे और विवेक के बारे में सब पता था।
मैंने दहेज में मिली सारी रकम दान कर दी, क्योंकि तुम्हारी आज़ादी को मैंने अपनी जिम्मेदारी माना। मैं तुम्हारा पति हूँ, मालिक नहीं।
जब चाहे यह घर छोड़ सकती हो।
यह तलाक़ के कागज़ हैं साइन करने से पहले एक बात याद रखना, प्यार वह नहीं जो छीन ले, प्यार वह है जो बिना कुछ मांगे तुम्हें आज़ाद छोड़ दे। नैना वहीं फर्श पर बैठ गई।
आँखों से आँसू गिरते रहे।
उसे पहली बार एहसास हुआ कि अर्जुन में जो खामोशी थी, वही उसका सबसे बड़ा प्रेम था। सुबह जब सूरज की किरणें कमरे में आईं, नैना रसोई में थी पूरे माथे पर सिंदूर की लंबी रेखा, साड़ी में सादगी और चेहरे पर एक नई रोशनी। अर्जुन को ऑफिस छोड़ने वही स्कूटी लेकर निकली।
सासू माँ पीछे बैठीं थीं, मुस्कुराती हुईं।
ऑफिस पहुँचकर जब उसने अर्जुन को फाइल पकड़ाई, तो वहाँ सबने तालियाँ बजाईं। अर्जुन थोड़ा झेंप गया।
नैना बोली, आज पहली बार लगा कि मैं सही जगह हूँ।
अर्जुन बस मुस्कुराया।
वो मुस्कान किसी जीत की नहीं थी वो थी एक त्यागी प्रेम की पहचान।