क्या ईमानदारी की कोई कीमत होती है?
क्या एक गरीब इंसान जिसके लिए दो वक्त की रोटी भी एक सपना हो, लाखों की दौलत को ठोकर मारकर अपने जमीर की आवाज सुन सकता है? और अगर वह ऐसा करता है, तो क्या ऊपर वाला किसी ना किसी रूप में उसकी इस नेकी का ऐसा सिला देता है जिसकी उसने कभी कल्पना भी ना की हो?
यह कहानी है अर्जुन की, एक ऐसे ही गरीब वेटर की जिसकी जिंदगी जयपुर के एक आलीशान होटल की झूठी प्लेटों और बची हुई रोटियों के बीच सिमटी हुई थी। यह कहानी है शेख अल-हमद की, दुबई के एक ऐसे शहंशाह की जिसके लिए सोना मिट्टी के बराबर था, पर जिसकी एक गुम हुई अंगूठी में उसके पूरे खानदान की इज्जत और उसके पिता की आखिरी निशानी कैद थी।
और यह कहानी है उस एक पल की जब अर्जुन के हाथ में वो सोने की अंगूठी आई, तो उसके सामने उसकी सारी गरीबी, उसकी बीमार माँ का चेहरा और उसकी बहन के टूटे हुए सपने खड़े थे। पर उसने चुना ईमानदारी का रास्ता। और फिर जब उस अरबपति शेख को अपनी खोई हुई अमानत वापस मिली, तो उसने उस गरीब वेटर को इनाम में कुछ ऐसा दिया जिसे देखकर सिर्फ उस होटल के मैनेजर ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के होश उड़ गए।
अध्याय 1: एक चुनाव
गुलाबी शहर जयपुर। इसी शहर के दिल में एक पांच सितारा होटल था, ‘द रॉयल राजपूताना पैलेस’। यह होटल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि चलता-फिरता एक सपना था। इसी सपनों की दुनिया का एक अदृश्य, लगभग अनचाहा हिस्सा था 27 साल का अर्जुन, इस होटल के रूम सर्विस डिपार्टमेंट में एक वेटर। उसकी दुनिया इस होटल की चमकदार लॉबी से बिल्कुल अलग थी। वो शहर के बाहर एक कच्ची बस्ती की तंग, अंधेरी गली में एक किराए की छोटी सी खोली में रहता था। उस खोली में उसके साथ उसकी बूढ़ी, बीमार माँ लक्ष्मी और उसकी छोटी बहन प्रिया रहती थी।
प्रिया 12वीं में पढ़ती थी और डॉक्टर बनना चाहती थी। पर अर्जुन जानता था कि यह एक ऐसा सपना है जिसे पूरा करने की उसकी हैसियत नहीं है। अर्जुन के पिता कुछ साल पहले कर्ज के बोझ तले दबकर दुनिया छोड़ गए थे। तब से घर की सारी जिम्मेदारी अर्जुन के कंधों पर थी। होटल की 12 घंटे की थका देने वाली नौकरी के बाद उसे महीने के 8000 रुपये मिलते थे। अर्जुन अक्सर होटल में मेहमानों की प्लेटों में बचे हुए महंगे खाने को देखता और सोचता कि काश इसका एक टुकड़ा वो अपनी माँ या बहन के लिए ले जा पाता। पर उसका जमीर उसे इसकी इजाजत नहीं देता। उसके पिता ने मरते समय उससे एक ही बात कही थी, “बेटा, चाहे भूखे सो जाना, पर कभी किसी की बेईमानी का एक दाना भी मत खाना। हमारी सबसे बड़ी दौलत हमारी ईमानदारी है।”
दूसरी तरफ, हजारों मील दूर दुबई के बुर्ज खलीफा के एक आलीशान पेंटहाउस में शेख अल-हमद की दुनिया बसती थी। वह अल-हमद ग्रुप के मालिक थे। इस बार उनकी भारत यात्रा और भी खास थी। वो अपने साथ अपने पिता की एक आखिरी निशानी लेकर आए थे: सोने की एक भारी, पुरानी और बेहद कीमती अंगूठी, जिस पर एक बाज बना हुआ था।
और फिर एक दिन, किस्मत ने इन दो अलग-अलग दुनियाओं को एक ही बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया। शेख अल-हमद अपने पूरे लावलश्कर के साथ ‘द रॉयल राजपूताना पैलेस’ में आकर ठहरे। अर्जुन की ड्यूटी भी उसी सुइट में लगाई गई थी। तीसरे दिन, शेख को एक जरूरी बिजनेस मीटिंग के लिए दिल्ली जाना पड़ा। वह सुबह-सुबह जल्दी में तैयार हो रहे थे। बाथरूम में हाथ धोते समय उन्होंने अपनी वो कीमती अंगूठी उतार कर सिंक के पास रख दी और फिर मीटिंग की जल्दी में वो उसे वहीं भूल गए।
कुछ घंटे बाद, जब सुइट खाली हुआ तो अर्जुन को उसे साफ करने के लिए भेजा गया। तभी उसकी नजर बाथरूम में सिंक के पास चमकती हुई एक चीज पर पड़ी। वो वही सोने की अंगूठी थी। अर्जुन का दिल जोर से धड़कने लगा। एक पल के लिए उसके दिमाग में एक ख्याल आया: ‘किसी को क्या पता चलेगा?’ उसने सोचा, इस एक अंगूठी को बेचकर उसकी सारी मुश्किलें खत्म हो सकती हैं। माँ का इलाज, प्रिया का एडमिशन, एक छोटा सा अपना घर। लालच का एक काला नाग उसके जमीर को डसने लगा था। उसने डर के मारे जल्दी से अंगूठी अपनी जेब में डाल ली। उसका पूरा शरीर पसीने से भीग गया था। वह आज ही यह नौकरी छोड़ देगा।
वह सुइट से बाहर निकलने ही वाला था कि अचानक उसे अपने पिता का कमजोर पर दृढ़ चेहरा याद आया। “बेटा, हमारी सबसे बड़ी दौलत हमारी ईमानदारी है।” यह शब्द उसके कानों में हथौड़े की तरह लगे। उसके अंदर एक भयानक जंग छिड़ गई। “मैं यह नहीं कर सकता। यह पाप है।” वह वहीं बाथरूम के ठंडे फर्श पर बैठकर रोने लगा। “हे भगवान, यह कैसी परीक्षा है तेरी?” आखिरकार, उसकी इंसानियत जीत गई। “नहीं, यह अंगूठी मेरी नहीं है। मुझे इसे लौटाना ही होगा।” पर कैसे? अगर उसने मैनेजर को बताया, तो क्या पता वह खुद ही यह अंगूठी हड़प जाए और इल्जाम उस पर लगा दे। उसने फैसला किया कि वो यह अंगूठी सीधा होटल के जनरल मैनेजर, मिस्टर आलोक वर्मा को ही सौंपेगा।
मिस्टर वर्मा एक बेहद सख्त इंसान माने जाते थे। गेट पर खड़ी सेक्रेटरी ने उसे रोक लिया। “मिस्टर वर्मा अभी मीटिंग में हैं।” “मुझे उनसे मिलना है, बहुत जरूरी काम है।” “तुम्हारे जैसे लोगों के लिए साहब के पास वक्त नहीं है। चलो जाओ यहाँ से।” अर्जुन निराश होकर लौट आया, पर उसने हार नहीं मानी। वह अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद घंटों तक ऑफिस के बाहर इंतजार करता रहा। दो दिन बीत गए, हर बार उसे डांट कर भगा दिया गया।
अध्याय 2: सच का सामना
उधर दिल्ली में जब शेख अल-हमद को अपनी अंगूठी के गायब होने का एहसास हुआ, तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने फौरन जयपुर के होटल में फोन किया। मिस्टर वर्मा को जब पता चला, तो उनके भी हाथ-पैर फूल गए। होटल में चोरी, और वह भी शेख अल-हमद जैसे वीवीआईपी मेहमान के सुइट में! उन्होंने फौरन सारे स्टाफ से पूछताछ शुरू कर दी, और शक की सुई सीधे अर्जुन पर ही गई। मिस्टर वर्मा ने सिक्योरिटी को भेजकर अर्जुन को उसके घर से उठवा लिया।
होटल में, मिस्टर वर्मा के ऑफिस में, अर्जुन एक अपराधी की तरह खड़ा था। “कहाँ है अंगूठी?” वर्मा उस पर चिल्लाया। “सच-सच बता दो, वरना मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा।” “साहब, मैंने चोरी नहीं की है,” अर्जुन ने कांपती हुई आवाज में कहा। “अंगूठी मेरे पास है, पर मैं उसे आपको नहीं, सीधा शेख साहब को ही देना चाहता था।” यह सुनकर वर्मा और भी भड़क गया। “तेरी यह हिम्मत? तलाशी लो इसकी!” गार्ड्स ने अर्जुन की तला-शी ली और उसकी जेब से अंगूठी निकली। “यह रहा सबूत!” वर्मा ने विजय मुस्कान के साथ कहा। “अब तो तू गया जेल।”
तभी ऑफिस का दरवाजा खुला और शेख अल-हमद खुद अंदर दाखिल हुए। “क्या हो रहा है यहाँ?” शेख ने अपनी भारी, रौबदार आवाज में पूछा। मिस्टर वर्मा ने लपक कर कहा, “सर, हमने चोर को पकड़ लिया है। इसी ने आपकी अंगूठी चुराई थी।” शेख ने एक नजर अर्जुन के डरे हुए पर सच्चे चेहरे को देखा। उन्होंने अर्जुन से पूछा, “क्या यह सच है?” “नहीं साहब,” अर्जुन की आंखों में आंसू थे। “मुझे यह अंगूठी आपके बाथरूम में मिली थी। मैं तो बस इसे आप तक पहुँचाना चाहता था, पर कोई मुझसे आपसे मिलने नहीं दे रहा था।” शेख ने वर्मा की ओर घूर कर देखा। “और तुम बिना किसी जांच के अपने ही एक कर्मचारी को चोर बता रहे हो?” उन्होंने होटल के मालिक, मि. राठौड़ से कहा, “मैं आपके सुइट की पिछले तीन दिनों की सीसीटीवी फुटेज देखना चाहता हूँ।”
फुटेज मंगवाई गई। उसमें साफ दिख रहा था कि कैसे शेख अंगूठी भूल जाते हैं, फिर अर्जुन आता है, उसे अंगूठी मिलती है। फुटेज में अर्जुन की घबराहट, उसका रोना, उसकी कशमकश, सब कुछ साफ-साफ रिकॉर्ड हो गया था। फुटेज देखने के बाद, ऑफिस में एक गहरा सन्नाटा छा गया। मिस्टर वर्मा का चेहरा सफेद पड़ चुका था। शेख अल-हमद अपनी कुर्सी से उठे और धीरे-धीरे चलकर अर्जुन के पास आए। उन्होंने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा। “मुझे माफ कर दो बेटे, हम तुम्हें गलत समझ रहे थे।” फिर वो मिस्टर वर्मा की ओर मुड़े। “तुम्हारी जगह इस होटल में नहीं, कहीं और है।” मि. राठौड़ ने फौरन मिस्टर वर्मा को नौकरी से निकाल दिया।
अब शेख ने अर्जुन को अपने पास बिठाया। “बताओ बेटे, तुम्हारी इस ईमानदारी के लिए मैं तुम्हें क्या इनाम दूं?” अर्जुन ने हाथ जोड़ दिए। “नहीं साहब, मुझे कुछ नहीं चाहिए। आपकी अमानत आप तक पहुँच गई, मेरे लिए यही सबसे बड़ा इनाम है।” शेख मुस्कुराए। “तुम्हारी यही बात तुम्हें सबसे अलग बनाती है।”
उन्होंने अर्जुन से उसके परिवार, उसकी मुश्किलों, उसकी बहन के सपनों के बारे में पूछा। जब उन्हें अर्जुन की पूरी कहानी पता चली, तो उनका दिल भर आया। उन्होंने अपने असिस्टेंट को कुछ फोन करने के लिए कहा। अगले 1 घंटे में अर्जुन की दुनिया हमेशा-हमेशा के लिए बदलने वाली थी। “अर्जुन,” शेख ने कहा, “तुम्हारी माँ का इलाज कल से जयपुर के सबसे अच्छे अस्पताल में शुरू होगा। दुबई से मेरे पर्सनल डॉक्टर आकर उनकी जांच करेंगे। सारा खर्चा अल-हमद ग्रुप उठाएगा।” “तुम्हारी बहन प्रिया डॉक्टर बनना चाहती है। उसका एडमिशन लंदन के सबसे अच्छे मेडिकल कॉलेज में करवाया जाएगा। उसकी पढ़ाई, रहना, खाना, सब कुछ मेरी जिम्मेदारी है।” अर्जुन को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। “और तुम, अर्जुन,” शेख ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “तुम जैसे ईमानदार नौजवान की जगह वेटर की नहीं, एक मैनेजर की कुर्सी पर है। मैं जयपुर में एक नया सेवन-स्टार होटल खोलने जा रहा हूँ, ‘अल-हमद पैलेस’, और उस होटल का जनरल मैनेजर तुम होगे।” यह सुनकर वहाँ मौजूद हर किसी के होश उड़ गए। “और हाँ,” शेख ने कहा, “जब तक वो होटल बनकर तैयार होता है, तब तक तुम और तुम्हारा परिवार मेरे इस प्रेसिडेंशियल सुइट में रहोगे। आज से यह तुम्हारा घर है।” अर्जुन रो रहा था। वो शेख के पैरों पर गिर पड़ा। शेख ने उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया। “मैंने कुछ नहीं किया बेटे। यह सब तुम्हारी अपनी कमाई है, तुम्हारी ईमानदारी की कमाई। तुमने मुझे इंसानियत पर मेरा खोया हुआ भरोसा लौटाया है, और यह चीज दुनिया की हर दौलत से ज्यादा कीमती है।”
उस दिन के बाद, अर्जुन की जिंदगी एक खूबसूरत सपने की तरह हो गई। उसकी माँ का अच्छा इलाज हुआ, उसकी बहन लंदन पढ़ने चली गई, और 2 साल बाद, जब ‘अल-हमद पैलेस’ का उद्घाटन हुआ, तो अर्जुन ने एक तेज-तर्रार और आत्मविश्वासी जनरल मैनेजर के तौर पर शेख अल-हमद का स्वागत किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि ईमानदारी का रास्ता भले ही मुश्किलों भरा हो, पर उसकी मंजिल हमेशा शानदार होती है।