समय का पलटवार
देवगढ़ नामक एक छोटे से गाँव में, जो हरे-भरे खेतों के बीच बसा था, राकेश नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह अपनी दौलत या ताकत के लिए नहीं, बल्कि अपने बड़े परिवार और खासकर अपनी पाँच बेटियों के कारण जाना जाता था। राकेश एक बड़े दिल वाला, मेहनती और ईमानदार किसान था। उसकी चार बड़ी बेटियाँ गाँव की सबसे सुंदरियों में गिनी जाती थीं। जब भी कोई उनकी सुंदरता की प्रशंसा करता, राकेश का दिल गर्व से भर जाता।
लेकिन उस गर्व के साथ हमेशा एक चिंता जुड़ी रहती थी, एक काला बादल जो उसकी खुशी पर छा जाता था: प्रिया, उसकी पाँचवीं और सबसे छोटी बेटी। अपनी बहनों की तुलना में, प्रिया का रूप-रंग बहुत साधारण था। उसका चेहरा आम था और कद भी छोटा था। जब भी राकेश गाँव के लोगों से प्रिया के बारे में बात करता, तो वे अक्सर मज़ाक उड़ाते, और उनके बेपरवाह शब्द एक पिता के दिल में सुई की तरह चुभते थे।
राकेश का सबसे बड़ा सपना था कि उसकी सभी बेटियों का अच्छे घरों में विवाह हो। लेकिन जब भी वह प्रिया के बारे में सोचता, तो समाज के ताने उसके कानों में गूंजते, और उसे लगता कि वह टूट रहा है। उसकी पत्नी, सुनीता, हमेशा उसे दिलासा देने की कोशिश करती। “आप इतना क्यों सोचते हैं?” वह कहती। “प्रिया में कोई कमी नहीं है। हमें उसे वैसे ही स्वीकार करना होगा जैसी वह है।”
लेकिन सुनीता जानती थी कि उसके पति का दिल प्रिया के लिए दुखी रहता है। एक शाम, राकेश ने अपनी पत्नी से अपना दिल खोला, उसकी आवाज़ भारी थी। “सुनीता, मैं सिर्फ इतना चाहता हूँ कि मेरी बेटियाँ अपनी ज़िंदगी में खुश रहें। पर हर बार जब लोग प्रिया का ज़िक्र करते हैं, मेरा दिल टूट जाता है।”
सुनीता ने उसे सहलाया, “प्रिया भी खुश रहेगी, जी। भगवान ने हमें जैसी बेटी दी है, हमें उसे स्वीकार करना चाहिए।” इन शब्दों ने राकेश को कुछ समय के लिए शांति दी, परंतु उसका मन अब भी प्रिया के भविष्य को लेकर चिंतित था।
समय बीतता गया और राकेश की चार बड़ी बेटियों की शादी की उम्र आ गई। सुंदरता और गुणों के कारण, उनके लिए रिश्ते आने लगे। राकेश ने अपनी चारों बेटियों के अच्छे घरों में विवाह तय कर दिए और उनकी शादी की तैयारियाँ शुरू कर दीं। पर प्रिया की शादी का सवाल उसके दिल पर एक बोझ बना रहा। उसका अपनी छोटी बेटी के लिए प्यार और चिंता दोनों गहरी थीं। वह उसे हर तरह की खुशियाँ देना चाहता था, परंतु समाज के लोग उसकी साधारण शक्ल-सूरत का मज़ाक उड़ाते। यह देख राकेश का मन उदास हो जाता।
एक दिन, उसकी चारों बड़ी बेटियाँ सज-धज कर आँगन में बैठी हँस-खेल रही थीं। उन्होंने प्रिया को अपने बीच बुलाया। प्रिया भी उस खुशी का हिस्सा बनना चाहती थी, परंतु वह खुद को अलग-थलग महसूस करती थी। उसकी बहनों ने उसे प्यार से गले लगाया और कहा, “प्रिया, तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। तुम हमारी सबसे प्यारी बहन हो।” अपनी बहनों का प्यार देखकर प्रिया खुश तो होती थी, लेकिन उसके मन में हमेशा एक अजीब सी उदासी रहती थी। उसे लगता कि वह अपनी बहनों जैसी नहीं है, और शायद इसलिए लोग उससे दूर रहते हैं। गाँव के लोग भी उसे तिरस्कार भरी नज़रों से देखते, और यही चीज़ प्रिया को अंदर से कमज़ोर करती जा रही थी।
राकेश ने धीरे-धीरे देखा कि प्रिया का आत्मविश्वास कम हो रहा है। उसकी सबसे चंचल और प्यारी बेटी अब गंभीर और खोई-खोई सी रहती थी। एक समय था जब प्रिया उसकी गोद में बैठकर कहानियाँ सुनती और खुलकर हँसती थी। लेकिन अब वह एक अजीब से अकेलेपन में खो गई थी। उसकी आँखों में एक उदासी थी जो उसके चेहरे पर साफ़ दिखती थी। यह देखकर राकेश भीतर ही भीतर टूटता जा रहा था। उसे महसूस हुआ कि प्रिया समाज के तानों के कारण खुद को छोटा समझने लगी थी। कई बार, उसकी बड़ी बहनें उससे कहतीं, “प्रिया, तुम हमारे साथ क्यों नहीं खेलती?” लेकिन प्रिया बस मुस्कुरा कर टाल देती। यह बात राकेश को बहुत चुभती थी। उसे अपने आप पर गुस्सा आता कि वह एक पिता होते हुए भी अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं कर पा रहा था।
काफी सोच-विचार करने के बाद, राकेश ने निश्चय किया कि वह अपनी बेटी का आत्मसम्मान लौटाने के लिए कुछ करेगा। उसने गाँव के एक प्रसिद्ध साधु के पास जाने का निश्चय किया, जो अपनी बुद्धिमत्ता और सलाह के लिए जाने जाते थे।
साधु बाबा एक वृद्ध व्यक्ति थे जिनकी दाढ़ी और बाल बर्फ़ जैसे सफ़ेद थे। उनके चेहरे पर एक शांत मुस्कान रहती थी। कहते थे कि उनके पास ऐसी दृष्टि थी जो किसी के भी मन की पीड़ा को समझ लेती थी। उस शाम, राकेश साधु बाबा की कुटिया पर गया, जो गाँव से थोड़ी दूर एक शांत जगह पर थी। वहाँ का वातावरण बहुत शांत और पवित्र था, हवा में हल्की अगरबत्ती की खुशबू फैली हुई थी। राकेश ने प्रणाम किया और बैठ गया। कुछ क्षणों की खामोशी के बाद, साधु बाबा ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और पूछा, “क्या बात है बेटा? तुम बहुत चिंतित लग रहे हो।”
राकेश की आँखों से आँसू छलक पड़े। उसने अपनी सारी परेशानी साधु बाबा के सामने रख दी। साधु बाबा ने सब कुछ सुनने के बाद कहा, “राकेश, हर इंसान के भीतर एक अनोखी सुंदरता होती है जो उसकी आत्मा में बसी होती है। दुनिया के लोग केवल बाहरी सुंदरता को देखते हैं, लेकिन असली सुंदरता उस सच्चाई में होती है जो इंसान के दिल में बसती है। तुम्हारी बेटी प्रिया में एक ऐसी खूबी है जो बहुत दुर्लभ है: उसकी मासूमियत और उसकी आत्मा की शुद्धता। यही उसे खास बनाती है। अगर तुम अपनी बेटी को उस नज़र से देखोगे, तो तुम्हें उसकी असली सुंदरता दिखाई देगी। लोगों की बातों पर ध्यान मत दो। अगर तुम अपनी बेटी को इस नज़र से देखोगे, तो लोग भी उसे इसी नज़र से देखने लगेंगे।”
साधु बाबा की ये बातें राकेश के दिल में गहराई से उतर गईं। उसने निश्चय किया कि वह अपनी बेटी की सुंदरता को उसके आत्मविश्वास से जोड़ेगा। वह प्रिया को इस तरह प्रेरित करेगा कि वह अपनी खासियत को समझ सके। उसी रात, उसने प्रिया के पास जाकर कहा, “बेटी, तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे अनमोल चीज़ हो। तुम्हारी मासूमियत और सच्चाई दुनिया की किसी भी सुंदरता से ज़्यादा खास है।”
यह सुनकर प्रिया खुशी से रो पड़ी। शायद यह पहली बार था जब उसने अपने पिता से अपने लिए इतना प्रेम महसूस किया था।
कई साल बीत गए। राकेश की चारों बेटियों की शादी हो चुकी थी, लेकिन प्रिया के लिए कोई उपयुक्त रिश्ता नहीं मिल रहा था। एक दिन, राकेश बाज़ार में सुरेश से मिला, जो गाँव का ही एक नाई था, लगभग 36 वर्ष का और अविवाहित। राकेश के मन में एक विचार आया। सुरेश एक अच्छा, मेहनती इंसान था और शायद अपनी उम्र के कारण वह प्रिया की असली कद्र करेगा।
राकेश ने हिम्मत करके सुरेश से कहा, “भाई, मैं अपनी छोटी बेटी प्रिया के लिए एक अच्छा वर ढूँढ रहा हूँ। अगर तुम चाहो, तो मैं चाहता हूँ कि तुम उससे शादी कर लो।”
सुरेश हैरान रह गया, लेकिन जब राकेश ने समझाया कि उसे बस एक ऐसा व्यक्ति चाहिए जो प्रिया को प्यार और सुरक्षा दे, तो वह मान गया। राकेश को लगा कि आखिरकार उसने प्रिया के लिए एक अच्छा वर ढूँढ लिया है।
गाँव भर में खबर फैल गई। राकेश के घर में शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं। उसकी अन्य बेटियाँ भी अपने परिवार के साथ शामिल होने आईं। प्रिया की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने अपने पिता को गले लगाते हुए कहा, “पिताजी, आपने मेरे लिए इतना सोचा, इसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ।”
राकेश ने अपनी सारी जमा-पूँजी इस शादी में खर्च करने का मन बना लिया। वह अपनी बेटी को हर खुशी देना चाहता था। लेकिन इस खुशी के माहौल में, सुरेश के मन में लालच का एक नया विचार आने लगा। उसने सोचा कि राकेश अपनी बेटी की शादी में पूरी तरह समर्पित है, इसलिए वह कुछ भी मना नहीं करेगा।
शादी से एक दिन पहले, सुरेश ने राकेश को अपने घर बुलाया और शर्त रखी, “राकेश जी, मुझे लगता है कि शादी के बाद हमें गाँव से बाहर जाने की ज़रूरत पड़ सकती है, तो मुझे एक कार चाहिए।”
राकेश चौंक गया। “कार? भाई, मैं तो एक साधारण किसान हूँ। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं। मैंने अपनी सारी जमा-पूँजी इस शादी में लगा दी है।”
सुरेश ने ठंडे स्वर में कहा, “यह मेरी शर्त है। अगर तुम मुझे कार नहीं दोगे, तो मैं यह शादी नहीं करूँगा।”
राकेश का दिल टूट गया। उसे अपनी बेटी की शादी टूटने का डर सताने लगा। शादी का दिन आ गया और राकेश ने फिर से सुरेश को समझाने की कोशिश की, लेकिन सुरेश अपनी शर्त पर अड़ा रहा। प्रिया ने अपने पिता को परेशान देखा तो समझ गई कि कुछ गंभीर बात है। सच जानने के बाद, उसने निश्चय किया कि वह स्थिति को खुद सँभालेगी।
जब सुरेश और उसका परिवार आए, तो प्रिया हिम्मत जुटाकर सुरेश के पास गई और पूछा, “तुम्हारी इस शर्त के बारे में क्या सच है?”
सुरेश ने घमंड से कहा, “हाँ, मैंने यह शर्त रखी है। मुझे कार चाहिए, वरना शादी नहीं होगी।”
प्रिया ने एक पल के लिए सोचा, और फिर अचानक सुरेश के सामने खड़ी होकर उसे एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
पूरे गाँव में सन्नाटा छा गया। सबकी नज़रें प्रिया पर टिक गईं। उसने गुस्से में कहा, “तुम जैसे लालची इंसान से शादी करने का मुझे कोई शौक़ नहीं है। तुमने मेरी और मेरे पिता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। अब तुम यहाँ से चले जाओ और कभी वापस मत आना।”
सुरेश हक्का-बक्का रह गया, उसके चेहरे पर अपमान की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं। गाँव के लोग भी उसकी घटिया सोच को समझ गए थे। बिना कुछ कहे, वह अपमानित होकर अपने परिवार सहित वहाँ से चला गया।
राकेश के मन में दुःख और संतोष का एक अजीब मिश्रण था। वह जानता था कि उसकी बेटी ने जो किया वह सही था, लेकिन एक पिता होने के नाते उसकी आँखों में आँसू आ गए। पर इस वक़्त, प्रिया के आत्मसम्मान और साहस को देखकर राकेश का मन गर्व से भर गया। उसने प्रिया को गले से लगा लिया और कहा, “बेटी, मुझे माफ़ कर देना कि मैंने तुम्हारे लिए ऐसा रिश्ता चुना। तुमने जो किया, उससे मेरे दिल में तुम्हारे लिए सम्मान और बढ़ गया है।”
प्रिया की आँखों में भी आँसू थे, लेकिन वह इस वक़्त मज़बूत और आत्मनिर्भर महसूस कर रही थी। उसने कहा, “पिताजी, मेरे लिए आपका सम्मान और प्यार सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। जो व्यक्ति हमारी भावनाओं की कद्र नहीं कर सकता, ऐसे व्यक्ति से शादी करके मैं खुद को ही खो देती। आज मैंने अपना आत्मसम्मान बनाए रखा, और यही मेरी सबसे बड़ी जीत है।”
गाँव के लोग भी प्रिया के इस कदम की सराहना कर रहे थे। उन्होंने महसूस किया कि असली सुंदरता उसके दिल और साहस में है।
कई साल और बीत गए, प्रिया अब भी अविवाहित थी। राकेश, निराशा और शराब में डूबकर, कठोर हो गया था। “तू अब तक अविवाहित क्यों है? क्या तुझे कोई मर्द नहीं मिला?” वह अक्सर गुस्से में चिल्लाता, उसके शब्दों में तिरस्कार झलकता था। “तेरी वजह से मुझे भीख माँगनी पड़ रही है। तू मेरी इज़्जत को मिट्टी में मिला रही है।”
हर रात, वह शराब के नशे में धुत होकर घर आता और प्रिया को भला-बुरा कहने के साथ-साथ मारपीट भी करता। एक रात, जब राकेश ने प्रिया को बुरी तरह पीटा, तब उसने अपनी आँखों में आँसू भरकर कहा, “पिताजी, मैं आपकी बेटी हूँ। अगर आप मुझे इसी तरह अपमानित करते रहेंगे, तो मैं इस घर में नहीं रहना चाहती।”
राकेश ने नशे में उसे धक्का देते हुए कहा, “तू यहाँ से चली जा! मुझे तेरी कोई ज़रूरत नहीं है।”
इस अपमान से दुखी होकर, प्रिया ने घर छोड़ने का निर्णय लिया। वह अपने सपनों को लेकर एक नई ज़िंदगी बनाने निकल पड़ी।
कुछ समय बाद, प्रिया ने एक खाद्य स्टॉल शुरू किया। उसने अपनी माँ के पारंपरिक व्यंजनों को बनाना शुरू किया, और जल्द ही उसका व्यवसाय बढ़ने लगा। प्रिया ने कड़ी मेहनत की, और उसका स्टॉल गाँव का सबसे लोकप्रिय स्थान बन गया। उसे अपनी मेहनत से मिली सफलता पर गर्व था। अब उसकी पहचान सिर्फ़ राकेश की बेटी नहीं थी, बल्कि एक सफल और आत्मनिर्भर महिला थी।
एक दिन, उसने दूर से एक परिचित व्यक्ति को आते देखा। यह उसके पिता राकेश थे। लेकिन उसके कपड़े देखकर प्रिया को बहुत आश्चर्य हुआ। राकेश सिर्फ़ अंडरवियर पहने हुए था।
“पिताजी, आपको क्या हुआ?” उसने हैरान होकर पूछा।
राकेश ने सिर झुकाकर कहा, “बेटी, तुम्हारे जाने के बाद मैंने एक 20 साल के लड़के को अनाथालय से गोद लिया था। मैंने सोचा कि वह मेरा सहारा बनेगा। लेकिन शादी के बाद, उसने मुझे अपने घर से बाहर निकाल दिया।”
एक पल के लिए प्रिया के मन में शांति आई, लेकिन तुरंत ही उसकी आँखों में गुस्सा भर गया। “आपने मुझे अपने जीवन में जगह नहीं दी, और अब आप उस लड़के के लिए अपनी सारी उम्मीद छोड़ चुके हैं। आपने मुझे हमेशा अपमानित किया, और अब जब आप मुश्किल में हैं, तो मुझे आपकी मदद करनी चाहिए?”
राकेश ने हाथ जोड़कर कहा, “बेटी, मुझे माफ़ कर दो। मैंने बहुत ग़लतियाँ की हैं।”
प्रिया ने गहरी साँस ली। उसने एक निर्णय लिया। “आप यहाँ रहने के लिए आ सकते हैं,” उसने कहा, “लेकिन मैं आपको केवल तब स्वीकार करूँगी जब आप मुझे और मेरी मेहनत का सम्मान करेंगे। आपको यह समझना होगा कि क्या आप वास्तव में बदलना चाहते हैं।”
राकेश ने सिर झुकाकर स्वीकार किया। अगले कुछ हफ़्तों में, प्रिया के प्रोत्साहन से, उसने अपनी शराब की आदत छोड़ने की कोशिश की और अपनी बेटी के स्टॉल पर काम करने लगा। उसने देखा कि कैसे उसकी बेटी ने मेहनत और संघर्ष से अपने व्यवसाय को खड़ा किया है।
लेकिन प्रिया उस अन्याय को भूल नहीं पाई थी। एक दिन, उसने अपनी बहनों से कहा, “हमें उस लड़के से बदला लेना है जिसने पिताजी को घर से निकाला था। उसे यह समझाना होगा कि उसने हमारे परिवार के साथ क्या किया है।”
उसकी बहनें प्रिया की दृढ़ता देखकर उस पर गर्व महसूस करने लगीं। उन्होंने मिलकर एक योजना बनाई और उस लड़के के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा करने शुरू कर दिए। गाँव के लोगों ने भी उनका साथ दिया। प्रिया ने पुलिस को बुलाया और सभी घटनाओं का विवरण बताया। गाँव वालों की गवाही और पुख्ता सबूतों के आधार पर पुलिस ने उस लड़के और उसकी पत्नी को गिरफ़्तार कर लिया।
अदालत में, यह केवल एक व्यक्तिगत बदला नहीं था, बल्कि यह उसके पूरे परिवार के लिए सम्मान और गरिमा की बहाली थी। जब न्यायालय ने उस लड़के और उसकी पत्नी को 5 साल की सज़ा सुनाई, तो प्रिया का दिल गर्व से भर गया।
अदालत से बाहर आते ही गाँव में एक उत्सव का माहौल था। “तुमने हमें गर्वित किया है,” उसकी बहनों ने उसे गले लगाते हुए कहा।
इस घटना के बाद, प्रिया गाँव की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन गई। उसने एक कार्यशाला शुरू की, जहाँ महिलाओं को खाना बनाने, सिलाई और अन्य कौशल सिखाए जाते थे ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। उसका व्यवसाय भी दिन-ब-दिन बढ़ने लगा। उसने स्थानीय बाज़ार में एक दुकान खोली और अपने भाई-बहनों को भी इस व्यवसाय में शामिल किया। अब उनका परिवार पहले से कहीं अधिक मज़बूत और एकजुट था।
कुछ वर्षों बाद, प्रिया ने एक अच्छे इंसान से शादी की। उसके पति ने भी उसके व्यवसाय में मदद की। उन्होंने मिलकर एक सुंदर घर बनाया जहाँ अब पूरा परिवार एक साथ रह सकता था।
प्रिया की कहानी अब गाँव के बच्चों के लिए एक सीख बन गई थी। उसने सिखाया कि एकता से ही हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं। एक बड़े उत्सव के साथ, गाँव वाले एकजुट होते हैं और प्रिया के साहस और संघर्ष की कहानी को सुनाते हैं। वह, जिसे कभी साधारण समझा जाता था, अब “देवगढ़ की बहादुर बेटी” के नाम से जानी जाती थी। उसकी कहानी हमेशा यह याद दिलाएगी कि जब हम एकजुट होकर खड़े होते हैं, तो हम किसी भी मुसीबत को मात दे सकते हैं।