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    India Story

    मैडम को सब्जीवाली औरत समझकर इंस्पेक्टर ने छेड़छाड़ की, थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के साथ जो हुआ.

    rinnaBy rinna23/10/202515 Mins Read
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    न्याय का संघर्ष

    सुबह का समय था। गांव के बाहर बनी सब्जी मंडी में रोज की तरह हलचल शुरू हो चुकी थी। कोई आवाज लगाकर सब्जियां बेच रहा था, कोई मोलभाव कर रहा था, तो कहीं मजदूर ठेले खींचते नजर आ रहे थे। चारों तरफ वही रोज जैसा शोरगुल और भागदौड़ थी। मगर इस सामान्य भीड़ में आज कोई ऐसा खास शख्स मौजूद था जिसका वहां होना बिल्कुल भी सामान्य नहीं था। वह महिला साधारण कपड़ों में थी। ना कोई सरकारी गाड़ी, ना सिक्योरिटी गार्ड, बिल्कुल आम इंसान की तरह। उम्र लगभग 34 साल, चेहरा शांत लेकिन आत्मविश्वास से भरा हुआ। देखने वालों को लगा जैसे यह कोई बाहर की महिला है। पर किसी को अंदाजा तक नहीं था कि यह इस जिले की नई डीएम, जिलाधिकारी अंजना राठौर हैं।

    डीएम अंजना राठौर धीरे-धीरे चलते हुए सीधे एक ठेले के पास जा रुकी, जहां एक बुजुर्ग महिला सब्जी बेच रही थी। अंजना ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, “अम्मा, गोभी क्या भाव दिए हैं?” महिला ने तराजू संभालते हुए जवाब दिया, “बेटी, आज गोभी ₹50 किलो है। आपको कितना चाहिए?” तभी सब्जी मंडी के शोर के बीच एक मोटरसाइकिल की तेज आवाज सुनाई दी। बाइक पर इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे मंडी में दाखिल हुआ। उम्र लगभग 40 साल, चेहरे पर रब और वर्दी का घमंड साफ झलक रहा था। वह सीधे उसी बुजुर्ग महिला के ठेले पर रुका। इंस्पेक्टर को देखते ही महिला के चेहरे पर घबराहट छा गई। उसने सिर झुकाकर धीमे स्वर में कहा, “आज क्या चाहिए आपको, इंस्पेक्टर साहब? जो भी चाहिए ले लीजिए।”

    इंस्पेक्टर ने हुक्म के लहजे में कहा, “1 किलो टमाटर दे और 1 किलो तोरई भी देना।” महिला ने बिना कोई सवाल किए तुरंत सब्जियां तोल कर दे दीं। इंस्पेक्टर ने सब्जियां आन ली और बिना एक भी पैसा दिए अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा और वहां से चला गया। यह सब देखकर डीएम अंजना राठौर हैरान रह गईं। उन्होंने बुजुर्ग महिला से गंभीर स्वर में पूछा, “अम्मा, उस इंस्पेक्टर ने आपको सब्जियों के पैसे क्यों नहीं दिए? और आपने उससे कुछ कहा क्यों नहीं? आपने उससे पैसे क्यों नहीं मांगे?” महिला की आंखों में लाचारी साफ झलक रही थी। दर्द से भरे स्वर में उसने कहा, “बेटी, क्या कहूं? इसका तो रोज का यही काम है। यह इंस्पेक्टर हर दिन ऐसे ही बिना पैसे दिए सब्जियां ले जाता है। जब मैं मना करती हूं तो मुझे धमकाता है। कहता है, ‘मुझसे पैसे मांगेगी तू? तेरी इतनी हिम्मत, अभी तेरा ठेला उठवाकर नाले में फेंकवा दूंगा।’ बेटा, मुझे डर लगता है। अगर ठेला चला गया तो घर कैसे चलेगा? मेरे पति विकलांग हैं। उनका इलाज चल रहा है। हर हफ्ते उनकी दवाई लेनी पड़ती है। इसलिए मजबूरी में चुपचाप इसे सब्जी आम दे देती हूं।”

    अंजना यह सुनकर भीतर तक हिल गईं। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि जो लोग कानून के रखवाले हैं, वही उसका मजाक बना रहे हैं। उन्होंने गहरी सांस ली और बुजुर्ग महिला से पूछा, “अम्मा, क्या आपकी कोई संतान नहीं है?” महिला की आंखें भर आईं। उसने धीमे स्वर में कहा, “एक बेटा था, फौजी था। एक साल पहले जम्मू कश्मीर में मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गया था।” यह सुनकर अंजना के चेहरे पर गंभीरता और बढ़ गई। उन्होंने कहा, “अम्मा, इस इंस्पेक्टर को तो आपकी मदद करनी चाहिए थी। आप इस उम्र में भी मेहनत करके अपना घर चला रही हैं और ऊपर से यह आपको डराता धमकाता है। बिना पैसे दिए सब्जियां लेता है। सच में कलयुग आ गया है। लेकिन अब आपको डरने की जरूरत नहीं है।” उन्होंने बुजुर्ग महिला का हाथ थामते हुए कहा, “अम्मा, अब मैं आपके साथ हूं। इस इंस्पेक्टर की दादागिरी अब और नहीं चलेगी। आप ऐसा कीजिए, मेरा नंबर ले लीजिए। कल जब आप ठेला लगाएंगी तो मुझे कॉल करना। कल आपके ठेले पर आप नहीं बल्कि मैं रहूंगी। मैं खुद देखूंगी कि वह पैसे दिए बिना कैसे जाता है। अगर उसने फिर ऐसा किया तो मैं उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करूंगी और उसे कानून की असली ताकत दिखाकर रहूंगी।”

    बुजुर्ग महिला की आंखों में कुछ उम्मीद जागी। उसे लगा कि शायद यह महिला मुझे उस इंस्पेक्टर से छुटकारा दिला सकती है। अगली सुबह डीएम अंजना राठौर ने गांव की एक साधारण औरत का रूप धारण किया। उसने एक साधारण साड़ी पहनी और वह सब्जी वाली बुजुर्ग औरत के ठेले पर आकर खड़ी हो गई। ठेले पर सब्जियां तरीके से सजी हुई थीं। ताजी गोभी, गाजर, भिंडी, हरी मिर्च और आलू। चारों ओर वही रोज का सामान्य माहौल था। लोग आते-जाते मोलभाव करते। कुछ ही देर में वही इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे अपनी मोटरसाइकिल पर वहां आ पहुंचा। उसने बाइक सीधे अंजना के ठेले के पास रोकी और घूरते हुए बोला, “क्या बात है? आज फिर तू यहीं?” वैसे तू उस औरत की क्या लगती है? कल भी तुझे यहीं देखा था और आज भी तू यहीं है।

    अंजना ने सहजता से जवाब दिया, “मैं उनकी बेटी हूं। आज उनकी तबीयत खराब थी। इसलिए मैंने कहा कि आज ठेले पर मैं बैठ जाती हूं।” इंस्पेक्टर ने चालाकी भरी मुस्कान के साथ कहा, “ओह, तो तू उसकी बेटी है। उस बुढ़िया ने कभी बताया नहीं कि उसकी इतनी खूबसूरत बेटी भी है। सच कहूं, तू बहुत प्यारी लग रही है।” उसने ठिठोली करते हुए पूछा, “और बता, शादी हो गई क्या तेरी?” अंजना ने शांत स्वर में कहा, “नहीं, अभी नहीं हुई।” इंस्पेक्टर ने हंसते हुए कहा, “ओह, अच्छा, मेरी भी शादी नहीं हुई है। मुझसे शादी करेगी?” अंजना ने दृढ़ स्वर में कहा, “नहीं, मुझे अभी शादी नहीं करनी।” इंस्पेक्टर हंसकर बोला, “अरे, मैं तो मजाक कर रहा था। छोड़ो यह सब। मुझे 1 किलो गोभी चाहिए। साथ में थोड़ा धनिया भी देना।” अंजना ने बिना कुछ कहे चुपचाप सब्जियां तौल कर उसके हाथ में दे दीं।

    इंस्पेक्टर बोला, “अच्छा ठीक है, तो मैं चलता हूं।” जैसे ही इंस्पेक्टर सब्जियां लेकर जाने को हुआ, अंजना ने तेज और सख्त आवाज में कहा, “रुकिए, इंस्पेक्टर साहब। आपने अभी तक सब्जियों के पैसे नहीं दिए।” वह ठिठक गया। अंजना फिर बोली, “सब्जियों के पैसे दीजिए। ऐसे नहीं चलेगा। यहां हमने कोई फ्री का भंडारा नहीं लगाया हुआ है।” इंस्पेक्टर झुंझलाकर गुस्से में बोला, “कौन से पैसे? मैं तो रोज सब्जियां फ्री में लेता हूं। अपनी मां से पूछ लेना। वो तो मुझे कुछ नहीं कहती। और तू ज्यादा जुबान मत चला मेरे सामने।” वह जाने के लिए मुड़ा ही था कि अंजना की आवाज और तेज हो गई। “रुकिए। आप मेरी मां से चाहे जैसे लेते हो लेकिन मुझसे नहीं ले सकते। सब्जियों के पैसे तो देने होंगे आपको।” अंजना ने फिर से कहा, “इंस्पेक्टर साहब, हमें भी पैसे खर्च करके ही यह सब्जियां लानी पड़ती हैं। और अगर हम एक दिन भी सब्जी ना बेचे, तो हमारे घर में चूल्हा नहीं जलता।”

    अंजना की आंखों में गुस्सा और आवाज में सख्ती थी। “आप जैसे लोग फ्री में सब्जी लेकर हमारे पेट पर लात मारते हैं।” इंस्पेक्टर साहब, इतना सुनते ही इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे का गुस्से का पारा और भी चढ़ गया। उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं। बिना कुछ सोचे-समझे उसने अचानक अंजना राठौर के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ इतना तेज था कि अंजना एक कदम पीछे लड़खड़ा गई। उसे समझ ही नहीं आया कि यह अचानक उसके साथ क्या हो गया। उसकी आंखों से आंसू आ गए लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था। मगर उससे कहीं गहरी चोट उसके आत्मसम्मान पर लगी थी। अब चुप रहने का समय नहीं था। कांपती लेकिन दृढ़ आवाज में अंजना राठौर बोलीं, “आपने एक महिला पर हाथ उठाकर बहुत बड़ी गलती की है। आपको अभी अंदाजा भी नहीं है कि आपने किस पर हाथ उठाया है। इसका अंजाम बहुत जल्द भुगतना पड़ेगा आपको।”

    इंस्पेक्टर का पारा और चढ़ गया। वह गुर्रा कर चिल्ला कर बोला, “अबे तू क्या समझती है खुद को? कोई बड़ी रईस है, कोई कलेक्टर है, मंत्री है, तू है क्या? तेरी इतनी औकात कि मुझे आंख दिखा रही है?” गुस्से में बेकाबू होकर उसने अंजना के बाल कसकर खींच लिए। अंजना दर्द से कराह उठी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। किसी तरह झटके से अपने बाल छुड़ाए। उनकी सांसें तेज हो चुकी थीं। चेहरा लाल था। लेकिन हिम्मत पत्थर की तरह मजबूत खड़ी थी। कड़क आवाज में अंजना बोली, “यह सब बहुत गलत हो रहा है। मैं तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट करूंगी। तुमने जो किया है, उसका हिसाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा।”

    पर इंस्पेक्टर तो अपनी वर्दी और रुतबे के नशे में चूर था। वो जोर से हंसता हुआ बोला, “मेरी खिलाफ रिपोर्ट करेगी तू? तेरी इतनी औकात है। तू एक मामूली ठेले पर सब्जी बेचने वाली और मैं इस इलाके का थानेदार। मैं तुझे यहीं खड़े-खड़े खरीद सकता हूं। ज्यादा जुबान चलाई तो उल्टा तुझे ही झूठे केस में फंसाकर जेल में डाल दूंगा।” इतना कहकर उसने अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और वहां से निकल गया। अंजना वहीं ठेले के पास खड़ी थी। उसके भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फूटने को तैयार था। मगर उसने अपने आप पर काबू रखा। उसने मन ही मन ठान लिया था कि इस इंस्पेक्टर को ऐसा सबक सिखाएगी कि उसकी सात पुश्तें भी किसी महिला पर हाथ उठाने से पहले हजार बार सोचेंगी। उसने तुरंत सब्जी बेचने वाली बुजुर्ग महिला को बुलाया और अंजना चुपचाप वहां से निकल गई। वो सीधे अपने घर लौटी। साधारण साड़ी उतार कर अब उसने दूसरे कपड़े पहन लिए थे। उसके चेहरे पर एक तेज था और उसकी आंखों में न्याय की आग जल रही थी।

    अंजना राठौर इस बार किसी डीएम की तरह नहीं बल्कि एक साधारण औरत की तरह थाने पहुंची। थाने में किसी को उनकी असली पहचान का अंदाजा नहीं था। अंदर आते ही उसने चारों तरफ देखा। इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे वहां मौजूद नहीं था। डेस्क पर एक सब इंस्पेक्टर बैठा चाय पी रहा था। अंजना उसके पास गई और बोली, “मुझे रिपोर्ट लिखवानी है। इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे कहां है?” सब इंस्पेक्टर ने कहा, “इंस्पेक्टर साहब तो जरूरी काम से घर गए हैं।” अंजना ने कहा, “तो मुझे एसएओ साहब से मिलवा दीजिए।” सब इंस्पेक्टर ने फिर कहा, “एसएचओ साहब तो फील्ड विजिट पर निकले हैं। आप चाहे तो थोड़ा इंतजार कर लीजिए। वह आते ही होंगे।”

    अंजना एक बेंच पर बैठ गई। अंदर से गुस्से की आग भड़क रही थी। पर चेहरा उतना ही शांत बना हुआ था। थोड़ी देर बाद एसएओ प्रीतम नायक थाने में आया। उसने बेंच पर बैठी महिला को देखा और तुरंत अपने पास बुलाया और पूछा, “कौन हो तुम? और यहां किस लिए आई हो?” अंजना बोली, “एसएचओ साहब, मुझे रिपोर्ट दर्ज करानी है।” प्रीतम ने कहा, “अच्छा, मेरे कमरे में आओ।” दोनों उसके केबिन में गए। प्रीतम ने कुर्सी पर बैठते ही कहा, “तो तुम्हें रिपोर्ट लिखवानी है लेकिन पहले खर्चा पानी देना पड़ेगा। यहां रिपोर्ट दर्ज कराने के ₹5000 लगते हैं। लाए हो तो निकालो, फटाफट फिर लिखते हैं तुम्हारी रिपोर्ट।”

    अंजना का चेहरा सख्त हो गया। वो बोली, “रिपोर्ट लिखवाने के लिए तो कोई पैसा नहीं लगता। आप तो मुझसे खुलेआम रिश्वत मांग रहे हैं।” एसएओ प्रीतम ने कहा, “अरे, तुम्हें किसने कहा कि यहां सब कुछ मुफ्त में होता है। यहां जो भी आता है, अपनी मर्जी से पैसे देकर ही जाता है। अगर तुम पैसे नहीं दोगी, तो तुम्हारी रिपोर्ट भी नहीं लिखी जाएगी। अब बाकी तुम्हारी मर्जी है।” अंजना ने गहरी सांस ली। फिर उसने चुपचाप जेब से ₹5000 निकाले और टेबल पर रख दिए। वो बोली, “लीजिए, अब मेरी रिपोर्ट लिखिए।” पैसे लेते ही एसएओ ने पूछा, “किसके खिलाफ रिपोर्ट लिखवानी है?” अंजना ने सीधी और ठोस आवाज में कहा, “इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे के खिलाफ। वो रोज एक बुजुर्ग महिला के ठेले से बिना पैसे दिए सब्जियां ले जाता है। जब वह औरत पैसे मांगती है तो उसे ठेला उठवाने की धमकी देता है और उसके साथ गाली गलौज करता है। और जब मैंने इसका विरोध किया तो उसने मुझ पर भी हाथ उठाया। मेरे साथ अमानवीय व्यवहार किया। मैं उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहती हूं।”

    यह सुनते ही एसएचओ प्रीतम नायक का चेहरा उतर गया। उसकी आंखों में डर साफ छलकने लगा। एसएओ प्रीतम नायक घबरा कर अटकते हुए बोला, “वाह, वो तो हमारे थाने के सीनियर इंस्पेक्टर हैं। और फिर अगर कोई फ्री में थोड़ा बहुत सामान दे दे, तो उसमें बुराई ही क्या है? हम पुलिस वाले हैं। हमारे लिए यह सब तो चलता है।” अंजना सब समझ चुकी थी। अब उसे यकीन हो गया था कि यह सिस्टम अंदर तक सड़ चुका है। वर्दी जो लोगों की रक्षा के लिए बनी थी, वही अब गरीब और बेबस लोगों को डराने और लूटने का हथियार बन चुकी थी। उसने और कुछ नहीं कहा। बस धीरे-धीरे उठी और चुपचाप थाने से बाहर निकल गई। लेकिन उसके चेहरे की खामोशी में अब एक अलग ही बात थी। उसकी आंखों में एक तेज चमक थी। जैसे कोई बड़ा तूफान आने से पहले का सन्नाटा हो।

    अगले दिन सुबह डीएम अंजना राठौर अब अपने असली रूप में आ चुकी थी। वह सरकारी गाड़ी और सुरक्षा कर्मियों के साथ उस थाने के लिए निकल पड़ी। जैसे ही वह थाने में अंदर पहुंची, थाने में खलबली मच गई। जो स्टाफ कल तक उन्हें एक आम औरत समझ रहा था, आज उन्हें इस रूप में देखकर सन्न रह गया। मुख्य हॉल में उनकी नजर सीधे इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे और एसएओ प्रीतम नायक पर पड़ी। कल तक रब में रहने वाले दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। रमाकांत सिंधे सहमा हुआ बोला, “मैडम, आप आप कौन हैं?”

    प्रीतम नायक बोला, “आप तो कल भी आई थीं रिपोर्ट लिखवाने।” अंजना ने सख्त स्वर में कहा, “हां, मैं ही थी। मैं हूं इस जिले की नई डीएम अंजना राठौर। और अब मुझे सब पता है कि तुम दोनों किस तरह गरीबों को डराते हो। रिश्वत मांगते हो और वर्दी की आड़ में गलत काम करते हो।” दोनों का रंग उड़ गया। प्रीतम नायक घबरा कर बोला, “मैडम, अगर आप सच में डीएम हैं तो कृपया आईडी दिखाइए।” अंजना ने सरकारी आईडी निकाली और दोनों को दिखाया। आईडी देखते ही एसएओ प्रीतम नायक और इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे के हाथ-पांव कांपने लगे। प्रीतम नायक ने घबराकर कहा, “माफ कीजिए मैडम। हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई।” रमाकांत सिंधे भी सिर झुका कर बोला, “मैडम, जो कुछ हुआ वह दोबारा नहीं होगा।”

    लेकिन अंजना अब पूरी सख्ती में थी। उन्होंने ठोस आवाज में कहा, “यह गलती नहीं, अपराध है और इसकी सजा जरूर मिलेगी।” फिर उन्होंने दोनों की आंखों में सीधा देखते हुए कहा, “तुम दोनों माफी के लायक नहीं हो। तुम दोनों ने जो किया वह किसी जिम्मेदार अधिकारी का काम नहीं था। वह तो सिर्फ एक अपराधी ही कर सकता है। अगर मैं आज तुम्हें माफ कर दूंगी तो शायद कल तुम फिर किसी गरीब की आवाज दबाओगे। फिर किसी मजबूर मजदूर पर जुल्म करोगे।” इतना कहकर उन्होंने तुरंत अपना मोबाइल फोन निकाला और जिले के एसपी को कॉल लगाया। आदेश दिया, “फला थाने के एसएओ प्रीतम नायक और इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे को तुरंत प्रभाव से निलंबित किया जाए। इनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की जाए। पूरी रिपोर्ट कल तक मेरी टेबल पर होनी चाहिए।”

    एसपी ने आदेश मानते हुए तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी। अंजना ने थाने के बाकी स्टाफ की ओर देखा और दृढ़ स्वर में बोली, “अब इस थाने में गरीबों का शोषण नहीं होगा। वर्दी की आड़ में कोई भी अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। आज पहली बार वहां सच में इंसाफ की गूंज सुनाई दी। इतना कहकर डीएम अंजना राठौर वहां से जाने लगी। तभी दोनों अधिकारी एसएओ प्रीतम नायक और इंस्पेक्टर रमाकांत सिंधे घुटनों के बल गिर गए। प्रीतम नायक कांपती आवाज में बोला, “मैडम, आप बिल्कुल सही कह रही हैं। हम सच में माफी के लायक नहीं हैं। लेकिन बस एक मौका दीजिए। हम सब कुछ बदल देंगे। गरीबों का सम्मान करेंगे। रिश्वत नहीं लेंगे और कानून का पालन करेंगे।”

    रमाकांत सिंधे भी सिर झुका कर बोला, “हमें माफ कर दीजिए मैडम। अगर अब गलती हुई तो आप हमें सस्पेंड मत कीजिएगा। सीधे जेल भेज दीजिएगा।” अंजना राठौर ने सख्त आवाज में कहा, “तुम दोनों माफी के लायक नहीं हो। यह गलती नहीं, यह गुनाह है और गुनाह की माफी नहीं होती। तुमने सिर्फ एक आम बुजुर्ग महिला पर अत्याचार नहीं किया बल्कि तुमने मेरे ऊपर भी, एक महिला और एक डीएम के ऊपर भी हाथ उठाया। भूल गए क्या? कल अगर तुम किसी की जान लेने के बाद पैरों में गिरकर माफी मांगोगे, तो क्या मैं माफ कर दूंगी? नहीं। कानून माफी नहीं देता और मैं भी तुम्हें माफ नहीं करूंगी।”

    पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। आज पहली बार हर किसी ने महसूस किया कि वर्दी से बड़ा कानून है और कानून से बड़ा न्याय। अंजना राठौर ने आखिर में कहा, “याद रखना, वर्दी पहनने से कोई ईश्वर नहीं बन जाता। अगर वर्दी पहनकर गुनाह करोगे तो यही वर्दी तुम्हें सलाखों के पीछे भी भेज सकती है।” इसके बाद डीएम अंजना राठौर थाने से बाहर निकल गई। पीछे सिर्फ सन्नाटा रह गया। उस दिन के बाद थाना सच में बदल गया। अब कोई रिश्वत नहीं मांगता। हर फरियादी को बराबरी से सुना जाता। गरीबों की एफआईआर बिना पैसे के दर्ज होती। बाजार, गलियों और चौराहों में अब पुलिस लोगों की मदद करती दिखती। डर नहीं फैलाती। वही सब्जी वाली औरत जो कभी सहमी रहती थी, अब अपने ठेले पर मुस्कुराती थी। क्योंकि अब उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं थी।

    इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि पद और रुतबा सिर्फ दिखावे की चीज नहीं बल्कि बड़ी जिम्मेदारी है। जब कोई अधिकारी अपने ओहदे का इस्तेमाल गरीबों और मजबूरों की मदद के लिए करता है तभी समाज में असली बदलाव आता है। अन्याय के खिलाफ खड़े होना आसान नहीं होता। लेकिन सच्चा लीडर वही है जो जुर्म करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। और सबसे जरूरी बात, लोगों के दिलों में वर्दी का डर नहीं, भरोसा होना चाहिए।

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